Ambedkar Row: अंबेडकर हिंदू राष्ट्र को क्यों मानते थे खतरा? कहा था- हिंदू राज हर कीमत पर रोको!

Ambedkar on Hindu Rashtra: बाबासाहेब अंबेडकर हिंदू राष्ट्र की अवधारणा से इत्तेफाक नहीं रखते थे. उन्होंने लिखा था कि हिंदू राज हर कीमत पर रोका जाना चाहिए. उन्होंने अपने जीवन के अंतिम क्षणों में बौद्ध धर्म अपना लिया था. आइए, जानते हैं कि बाबासाहेब हिंदू राष्ट्र को खतरा क्यों मानते थे.

Written by - Ronak Bhaira | Last Updated : Dec 19, 2024, 11:10 AM IST
  • 1956 में अंबेडकर ने अपनाया बौद्ध धर्म
  • हिंदू व्यवस्था में नहीं मिल पाया समान दर्जा
Ambedkar Row: अंबेडकर हिंदू राष्ट्र को क्यों मानते थे खतरा? कहा था- हिंदू राज हर कीमत पर रोको!

नई दिल्ली: Ambedkar on Hindu Rashtra: संसद में देश के गृहमंत्री अमित शाह द्वारा बाबासाहेब अंबेडकर पर दिए गए बयान पर सियासत तेज है. कांग्रेस ने भाजपा को अंबेडकर विरोधी बताया. जवाब में अमित शाह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. उन्होंने कांग्रेस पर बाबासाहेब को चुनाव हराने का आरोप लगाया. इसी बीच बाबासाहेब द्वारा कही गईं अलग-अलग बातें याद की जा रही हैं. चलिए, जानते हैं कि बाबासाहेब हिंदू राष्ट्र की अवधारणा के बारे में क्या सोचते थे. 

हिंदू राष्ट्र पर अंबेडकर के विचार
बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपनी किताब 'Pakistan or partition of India' में हिंदू राष्ट्र का जिक्र करते हुए इस पर अपनी राय रखी है. उन्होंने लिखा- यदु हिंदू राष्ट्र सचमुच एक वास्तविकता बन जाता है, तो इसमें संदेह नहीं कि यह देश के लिए भयानक विपत्ति होगी. यह स्वाधीनता, समता और बंधुत्व के लिए खतरा साबित होगा. यह लोकतंत्र से मेल नहीं खाता. हिंदू राज को हर कीमत पर रोका जाना चाहिए.'

कैसा धर्म मानते थे अंबेडकर?
दरअसल, बाबासाहेब का मानना था कि देश में हिंदू राज आ गया तो बराबरी, आजादी और भाईचारे पर खतरा होगा. यही कारण है कि वे हिंदू राष्ट्र की अवधारणा के विरोधी थे. उन्होंने इसी वजह से हर कीमत पर हिंदू राज को हर कीमत पर रोकने की बात कही. अंबेडकर कहते थे कि मैं ऐसे धर्म को मानता हूं, जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाए.

अंबेडकर ने क्यों अपनाया बौद्ध धर्म?
कांग्रेस के लोकसभा सांसद शशि थरूर ने बाबासाहेब अंबेडकर पर 'Ambedkar: A Life' नाम से किताब लिखी है. इसमें उन्होंने अंबेडकर के जीवन के बारे में बताया है. थरूर अपनी किताब में लिखते हैं- जब अंबेडकर को यह आभास हो गया कि दलितों को हिंदू व्यवस्था में समान दर्जा नहीं मिल पाएगा, तब वह एक वैकल्पिक धर्म की तलाश करने में जुट गए. वे ऐसा धर्म चुनना चाह रहे थे जिसमें धार्मिक और आध्यात्मिक मूल्यों के लिए जगह हो. साथ ही नैतिक सामाजिक व्यवस्था की अवधारणा हो, जिसमें किसी के साथ भी भेदभाव और शोषण स्वीकृति न दी जाए. जहां जन्म के आधार पर सामाजिक वर्गीकरण न हो. लिहाजा, उन्होंने बौद्ध धर्म को मुफीद पाया और 4 अक्टूबर, 1956 को इसे अपना लिया.

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