Tejaji Maharaj : गौमाता को है कलयुग के वीर तेजाजी का इंतजार, जिन्होंने गायों के लिए दी खुद की बलि | Lumpy Disease
Rajasthan Culture | Tejaji Maharaj | Lumpy Disease : तेजाजी महाराज की धरा पर तिल-तिल कर गाये मर रही है. लेकिन जिम्मेदार घूंघट ओढ़े बैठे हैं. यह वही धरती हैं जहां तेजाजी महाराज ने गयो तो बचाने के लिए अपनी जान तक कुरबान कर दी थी. लेकिन आज लंपी महामारी के दौर में गौवंशों को आज के तेजाजी का अब भी इंतजार है. गौमाता को है कलयुग के वीर तेजाजी का इंतजार, जिन्होंने गायों के लिए दी खुद की बलि
Rajasthan Culture | Veer Tejaji Maharaj | Lumpy Disease : मरुधरा की धरा में इन दिनों 'लंपी' का जबरदस्त प्रकोप देखने को मिल रहा है. खासकर गौवंश तिल-तिल कर काल के गाल में समाती जा रही हैं. लेकिन व्यवस्था गज भर का घूंघट ओढे बैठी है. यह वीर तेजाजी (Veer Tejaji Maharaj), हड़बूजी ( Hadbuji ), पाबूजी ( Pabuji ) और बिग्गाजी ( Biggaji ) जैसे महान वीरों की पावन धरा हैं. जिन्होंने गौवंशों की रक्षा के लिए अपनी जान तक कुरबान कर दी थी. लेकिन आज हजारों गाय मौत के आगौश में समाती जा रही है लेकिन सूबे के जिम्मेदार सिर्फ तमाशा देखने और करने में लगे हुए हैं.
गांवों की अर्थव्यवस्था हुई चौपट
लंपी ( Lumpy Disease ) का सबसे ज्यादा प्रकोप सूबे में सुदूर पश्चिम इलाके में है, लेकिन सैंकड़ों किलोमीटर दूर राजधानी में रहनुमा बचाव की युद्ध स्तर पर कार्य योजना बनाने की बजाय अपना सियासी और सॉफ्ट हिंदूत्व चेहरा चमकाने की जिद्दोदहद में जुटे हुए हैं. गांवों की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चौपट होने की कगार पर है. हजारों लोगों की रोजी-रोटी संकट में है. लेकिन वीर तेजाजी महाराज जैसा संकल्प लेने की बजाए जिम्मेदार एसी कमरों में बैठकर सिर्फ फाइलों को इधर-उधर घुमाने में लगे हैं.
हिंदू समाज में गाय को माता का दर्जा है. मंदिरों में भगवान शिव के साथ गाय के रूप में नंदी की पूजा की जाती है लेकिन आज वहीं गौवांश संकट में है. राजस्थान में गायों की रक्षा की कई कहानियां प्रचलित है. गायों की रक्षा के चलते ही तेजाजी महाराज को वीर बना दिया. आज राजस्थान ही नहीं बल्कि गुजरात, मध्यप्रदेश और हरियाणा में भी वीर तेजाजी को पूजा जाता है.
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गायों के लिए तेजाजी ने कर दी थी जान कुरबान
एक बार की बात है जब लाछा गुजरी की गायों को दस्यु गिरोह लूटकर ले गए. तब तेजाजी महाराज अपने एक साथी के साथ जंगलों में लाछा गुजरी की गायों को छुड़ाने के लिए चल पड़े. रास्ते से गुजरते हुए उन्हें आग में जलता सांप दिखा. जिसे तेजाजी ने बचाया, लेकिन सांप अपना जोड़ा बिछड़ने से बेहद दुखी था. इसलिए उसने डंसने के लिए फुंफकारा. लेकिन तेजाजी महाराज उस सांप को वचन दे देते है कि पहले वो लाछा गुजरी की गायों को छुड़ाकर वापस लाएंगे. फिर सांप उन्हें डस ले. तेजाजी का वचन सुन कर सांप उनके रास्ते से हट जाता है.
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ऐसे निभाया वादा
जिसके बाद दस्यु गिरोह से लोहा लेते हुए तेजाजी लाछा गुजरी ( lachi gurjari ) की गायों को छुड़ाने में सफल हो जाते हैं. लेकिन दस्यु गिरोह के प्रहार से तेजाजी महाराज बुरी तरह घायल हो जाते हैं. लिहाजा ऐसे में जब तेजाजी ( Veer Tejaji Maharaj ) अपना वचन पूरा करते हुए सांप के पास पहुंचते है तो सांप खून से सना हुआ देखकर उनसे कहता है कि आपका शरीर तो पूरी तरह से अपवित्र हो गया. मैं डंक कहां मारू. जिसके बाद लोकदेवता तेजाजी महाराज अपना वचन पूरा करने के लिए सांप को डसने के लिए अपनी जीभ आगे कर देते है.
तेजाजी की प्रतिबद्धता को देख नागदेव उन्हें आश्रीवाद देते है कि कोई व्यक्ति सर्पदंश (सांप के डसने से) पीड़ित तुम्हारे नाम का धागा बांधेगा तो उस पर जहर का असर नहीं होगा. इसी प्रचलित मान्यता के चलते हर साल भाद्रपद शुक्ल की दशमी को तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है.
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