Jaipur: राजस्थान हाईकोर्ट ने कैदियों के कल्याण के संबंध में दिए आदेशों की पालना को लेकर महाधिवक्ता को कहा है कि वे मामले में न्यायमित्र की ओर से बताई कमियों को देखें. 


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वहीं अदालत ने यह भी कहा कि इस संबंध में सरकारी विभागों को समन्वय रखकर काम करना चाहिए, इसके साथ ही अदालत ने मामले की सुनवाई तीन सप्ताह के लिए टाल दी है. सीजे एसएस शिंदे और जस्टिस अनूप ढंड की खंडपीठ ने यह आदेश जेल में कैदियों के कल्याण के संबंध में लिए गए स्वप्रेरित प्रसंज्ञान पर सुनवाई करते हुए दिए है. 


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सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता की ओर से अदालत के 45 बिन्दुओं पर दिए आदेश की पालना को लेकर रिपोर्ट पेश की गई, जिसका विरोध करते हुए न्यायमित्र प्रतीक कासलीवाल ने कहा कि महाधिवक्ता ने 15 अक्टूबर 2019 को अदालत को आश्वस्त किया था कि मार्च 2020 तक प्रीजन बिल विधानसभा से पारित हो जाएगा. 


जबकि बिल अभी तक पारित नहीं हुआ है. इसके अलावा चालानी गार्ड की इतनी कमी है कि केवल एक तिहाई कैदी ही ट्रायल के लिए अदालतों में पहुंच पाते है. वहीं जेल अधीक्षक अपने स्तर पर रिपोर्ट बनाकर भेज देते है लेकिन उन्हें अन्य विभागों से जुडे कामों के संबंध में जानकारी ही नहीं होती है. 


वहीं महाधिवक्ता ने कहा कि उन्हें तीन सप्ताह का समय दिया जाए. इस पर अदालत ने कहा कि विभागों को आपस में समन्वय रखना चाहिए और महाधिवक्ता न्यायमित्र की बताई कमियों को भी देखें. गौरतलब है कि जेल में मोबाइल मिलने और कैदियों के कल्याण को लेकर हाईकोर्ट ने स्व प्रेरणा से प्रसंज्ञान लेकर पूर्व में 45 बिन्दुओं पर राज्य सरकार को दिशा-निर्देश जारी किए थे.


Reporter: Mahesh Pareek


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