सात समंदर पार से आए मेहमानों ने लाठी में डाला डेरा, अगले साल मार्च से होगी वतन वापसी
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सात समंदर पार से आए मेहमानों ने लाठी में डाला डेरा, अगले साल मार्च से होगी वतन वापसी

जिले के लाठी क्षेत्र में गत एक सप्ताह से गांवों के ऊपर अपने पड़ाव स्थल की जांच पड़ताल करने के लिए आकाश में चक्कर लगा रही कुरजां पक्षी आज सुबह खेतोलाई, चाचा गांव के पास स्थित तालाबों पर दस्तक दे दी है.

सात समंदर पार से आए मेहमानों ने लाठी में डाला डेरा, अगले साल मार्च से होगी वतन वापसी

जैसलमेर: जिले के लाठी क्षेत्र में गत एक सप्ताह से गांवों के ऊपर अपने पड़ाव स्थल की जांच पड़ताल करने के लिए आकाश में चक्कर लगा रही कुरजां पक्षी आज सुबह खेतोलाई, चाचा गांव के पास स्थित तालाबों पर दस्तक दे दी है. सुबह से खेतोलाई गांव के पास स्थित तालाब पर कुरंजो को स्वच्छंद विचरण करते हुए देखा गया. इससे पहले कुरजां पक्षियों के जत्थे ने एक सप्ताह तक गांव के ऊपर चक्कर लगाकर अपने पड़ाव स्थल की पहचान की. वहीं, अपने स्थल पर दस्तक देने के बाद क्षेत्र के पक्षी प्रेमियों के चेहरों पर खुशी की लहर आ गई है.

पहले जत्थे ने दी दस्तक

वन्यजीव प्रेमी राधेश्याम विश्नोई ने बताया कि खेतोलाई व चाचा गांव के पास स्थित तालाबों पर सुबह से कुरजां का जत्था विचरण करते हुर देखा गया. कुरजा ने पड़ाव डालने के बाद स्वच्छंद विचरण करते हुए अपने पड़ाव स्थलों की पहचान की.

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कुछ दिन तक करेंगे जांच-पड़ताल

पक्षी प्रेमी राधेश्याम पेमाणी ने बताया कि प्रवासी पक्षी कुरजां के एक सप्ताह पूर्व क्षेत्र में उड़ान भरते हुए गए थे.उनमें से दो जत्थे सुबह अपने पड़ाव स्थल खेतोलाई,चाचा गांव के पास तालाबो पर उतर आये है.अब कुरजा के शेष पक्षी भी कुछ दिन तक आकाश में उडते हुए अपने परंपत्तगत पड़ाव स्थल की पहचान एवं पूरी जांच पड़ताल करेंगे.उसके बाद कुछ ही दिनों में शेष पक्षी भी नीचे उतरेंगे.तापमान में गिरावट के साथ ही क्षेत्र में पक्षियों की संख्या में वृद्धि होगी.

खुले मैदान में डालते हैं डेरा

विश्नोई ने बताया कि प्रवासी पक्षी कुरजां का वजन करीब दो से ढाई किलो होता है.यह पानी के आसपास खुले मैदान और समतल जमीन पर ही अपना अस्थाई डेरा डालकर रहते हैं. इन पक्षियों का मुख्य भोजन वैसे तो मोतिया घास होती है और पानी के पास पास पैदा होने वाले कीड़े मकोड़े खाकर अपना पेट भरते हैं. क्षेत्र में अच्छी बारिश होने पर खेतों में होने वाले मतीरे की फसल भी इनका पंसदीदा भोजना माना जाता है. यहां वे लाठी सहित खेतोलाई,भादरिया चाचा,धोलिया,डेलासर,लोहटा गांव के पास स्थित तालाब व खडीनो पर देखे जा सकते हैं.

ऐसे आती है कुरजां

कुरजां एक खूबसूरत पक्षी है जो सर्दियों में साइबेरिया से ब्लैक समुद्र से लेकर मंगोलिया तक फैले प्रदेश से हिमालय की ऊंचाइयों को पार करता हुआ हमारे देश में आता है. सर्दियां हमारे मैदानों और तालाबों के करीब गुजारने के बाद वापस अपने मूल देश में लौट जाता है. अपने लंबे सफर के दौरान यह पांच से आठ किलोमीटर की ऊंचाई पर उड़ता है. राजस्थान में हर साल लगभग पचास स्थानों पर कुरजां पक्षी आते हैं, लेकिन इनकी सबसे बड़ी संख्या लाठी क्षेत्र में ही दिखाई देती है. कुरजां यहां के परिवेश में इतना घुलमिल गया है कि इस पर कई लोकगीत बन चुके है. यहां इनके बच्चे होते हैं और उनके बड़े होते ही ये उड़ान भर लेते हैं.

6 माह का होगा प्रवास

कुरजां प्रतिवर्ष सितम्बर माह के प्रथम सप्ताह में लाठी क्षेत्र पहुंच जाती है और मार्च में वतन वापसी की उड़ान भरती है. इस दौरान छह माह के शीतकालीन प्रवास में ये पक्षी यहां हजारों की तादाद में एकत्रित होकर क्षेत्र को पर्यटक स्थल का रूप दे देते हैं. उल्लेखनीय है कि प्रवासी पक्षी कुरजां के आगमन के साथ ही लाठी क्षेत्र में देसी-विदेशी पर्यटकों की चहल-पहल बढ़ जाती है.

Reporter- Shankar dan

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