Rajasthan News: हिन्दू वर्ष की स्थापना एवं चैत्रीय नवरात्र को लेकर सूर्यनगरी जोधपुर में विशेष उत्साह नजर आ रहा है. नवरात्रि पर माता रानी का दरबार सजा है, तो जोधपुर के मेहरानगढ़ की तलहटी में बने प्राचीन मां चामुंडा मंदिर में अल सवेरे से ही भक्तों का आना शुरू हो गया. जोधपुर के लोग मां चामुंडा के दर्शन के साथ ही नए साल की शुरुआत करते है. मां चामुंडा की आरती के साथ ही जयकारों के साथ माता के भक्तों ने उनके दर्शन करने के साथ ही मनोकामनाएं पूरी होने की प्रार्थना की. मंदिर प्रांगण में सुरक्षा के लिहाज से भी पुलिस ने चाक चौबंद व्यवस्था कर रखी है.  


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भारत-पाक युद्ध के दौरान गिरे बम से जुड़ी मान्यता 
मेहरानगढ़ दुर्ग स्थित मंदिर में चामुंडा की प्रतिमा 558 साल पहले विक्रम संवत 1517 में जोधपुर के संस्थापक राव जोधा ने मंडोर से लाकर स्थापित किया था. परिहारों की कुलदेवी चामुंडा को राव जोधा ने भी अपनी इष्टदेवी स्वीकार किया था. जोधपुरवासी मां चामुंडा को जोधपुर की रक्षक मानते हैं. मां चामुंडा माता के प्रति अटूट आस्था का कारण यह भी है कि वर्ष 1965 और 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान जोधपुर पर गिरे बम को मां चामुंडा ने अपने आंचल का कवच पहना दिया था. 


मेहरानगढ़ किले पर आज भी मंडराती है चील
वहीं, किले में 9 अगस्त 1857 को गोपाल पोल के पास बारूद के ढेर पर बिजली गिरने के कारण चामुंडा मंदिर कण-कण होकर उड़ गया, लेकिन मूर्ति अडिग रही. मां चामुंडा के मुख्य मंदिर का विधिवत निर्माण महाराजा अजीतसिंह ने करवाया था. मारवाड़ के राठौड़ वंशज चील पक्षी को मां दुर्गा का स्वरूप मानते हैं. राव जोधा को माता ने आशीर्वाद में कहा था कि जब तक मेहरानगढ़ दुर्ग पर चीलें मंडराती रहेगी, तब तक दुर्ग पर कोई विपत्ति नहीं आएगी. आज भी मेहरानगढ़ किले पर प्रतिदिन सुबह शाम चीलें मंडराती है, जिनको किले की ओर से भोजन करवाया जाता है. 


रिपोर्टर- राकेश कुमार भारद्वाज


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