लूणी में श्रद्धा और उमंग से मनाया जा रहा बच्छ बारस का पर्व, महिलाओं ने गाए मंगल गीत
जोधपुर जिले के लूणी क्षेत्र के धुंधाडा, सर, सरेचा, सालावास लूणी सहित समूचे लूणी क्षेत्र में आज बच्छ बारस का त्यौहार महिलाएं उत्साह और उमंग से मना रही हैं. हिंदू कैलेंडर की भादवे माह की कृष्ण पक्ष द्वादशी तिथि को बच्छ बारस का त्यौहार मनाया जाता है.
Luni: राजस्थान के जोधपुर जिले के लूणी क्षेत्र के धुंधाडा, सर, सरेचा, सालावास लूणी सहित समूचे लूणी क्षेत्र में आज बच्छ बारस का त्यौहार महिलाएं उत्साह और उमंग से मना रही हैं. हिंदू कैलेंडर की भादवे माह की कृष्ण पक्ष द्वादशी तिथि को बच्छ बारस का त्यौहार मनाया जाता है.
इस दिन महिलाएं गाय और उसके बछड़े की पूजा अर्चना कर अपने परिवार की खुशियों की कामना करती हैं. क्योंकि गायों में सभी देवी-देवताओं का निवास माना जाता हैं. क्षेत्र के धुंधाडा कस्बे के होली चौक में महिलाओं ने सोलह श्रृंगार करके सुबह की वेला में मंगल गान गाती हुई समूहों में आकर गौवंश की पूजा अर्चना कर सुख समृद्धि की कमाना की है. इस अवसर पर वंदना द्विवेदी, कांता बाबावत, आरती श्रीमाली, मंगला गौरी, वर्षा शर्मा, भारती सोनी आदि महिलाएं उपस्थित थी.
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बछ बारस पूजन विधि
इस पर्व का अपना ही एक अलग महत्व है. इस दिन महिलाएं व्रत रखने के लिए सवेरे स्नान करके साफ वस्त्र पहनती हैं. इसके बाद गाय और उसके बछड़े को स्नान कराया जाता है. दोनों को नए वस्त्र ओढ़ाए जाते हैं. गाय और बछड़े को फूलों की माला पहनाया जाता है और दोनों के माथे पर तिलक लगाए जाते है और उनके सीगों को सजाया जाता है.
इसके बाद एक तांबे के पात्र में अक्षत, तिल, जल, सुगंध और फूलों को मिलाया जाता है और इसे 'क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते। सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:॥' मंत्र का उच्चारण करते हुए गौ प्रक्षालन किया जाता है. गौ माता के पैरों में लगी मिट्टी से अपने माथे पर तिलक लगाना होता है और बछ बारस की कथा सुनी जाती है. इसके साथ ही दिनभर व्रत रखा जाता है. रात को अपने इष्ट और गौमाता की आरती करके व्रत खोला जाता है और भोजन किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन गाय के दूध, दही और चावल नहीं खाने चाहिए बल्कि बाजरे की ठंडी रोटी का सेवन करना चाहिए.
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