एम्स का दावा है कि इतनी कम उम्र में इस बीमारी का ऑपरेशन करने का यह देश में पहला मामला है. पीडियाट्रिक सर्जन डॉ. अरविंद सिन्हा ने बताया कि बच्चे की ब्लड जांच और सीटी स्कैन करवाई तब पता चला कि खून की दो नस जुड़ने से बच्चे के लिवर में खून नहीं जा पा रहा था.
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Luni: अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ने एक दुर्लभ बीमारी से ग्रसित 10 वर्षीय बच्चे का अनोखा ऑपरेशन कर कीर्तिमान रच दिया. शिकारगढ़ का यह बच्चा एबरनेथी मैल्फोर्मेशन बीमारी से पीड़ित था यानी लिवर और शरीर में खून की सप्लाई करने वाली नसों में जॉइंट होने के चलते लिवर में खून की सप्लाई नहीं हो रही थी.
इस कारण उम्र की तुलना में वजन में बढ़ोतरी नहीं हो रही थी. सामान्य बच्चों की तुलना में मानसिक कमजोर भी हो रहा था. समय पर इलाज नहीं मिलने पर लिवर फेलियर, फेफड़ों में दिक्कत और कोमा में जाने का भी खतरा था. ऐसे में एम्स के डॉक्टर्स ने तुरंत ऑपरेशन का निर्णय लिया गया जो कि काफी जटिल था, इसलिए पीडियाट्रिक सहित अन्य विभागों ने 8 दिन तक मंथन की रणनीति बनाई. फिर पहले एनाटोमी विभाग में रखे एक शव पर ऑपरेशन का ट्रायल किया, जिसके सफल रहने पर 5 विभागों की टीम ने 7 घंटे तक ऑपरेशन कर बच्चे की जान बचा ली. अभी पीडियाट्रिक आईसीयू में भर्ती बच्चा पूरी तरह स्वस्थ है. एक - दो दिन में छुट्टी भी दे दी जाएगी.
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एम्स का दावा है कि इतनी कम उम्र में इस बीमारी का ऑपरेशन करने का यह देश में पहला मामला है. पीडियाट्रिक सर्जन डॉ. अरविंद सिन्हा ने बताया कि बच्चे की ब्लड जांच और सीटी स्कैन करवाई तब पता चला कि खून की दो नस जुड़ने से बच्चे के लिवर में खून नहीं जा पा रहा था. ऑपरेशन से पहले हमने एनाटोमी विभाग में देहदान में मिले शव पर यह ऑपरेशन किया ताकि बच्चे का ऑपरेशन करते समय कोई गड़बड़ नहीं हो. बच्चे को पल्मोनरी आर्टरी, हाइपरटेंशन, हेपटोपल्मोनरी खून एंसेफलोपैथी, सिंड्रोम, ग्लोमेरुलोपैथी में अमोनिया के बढ़ोतरी जैसी जटिलता थी, जिससे उसकी जान को खतरा था.
वहीं, ड\क्टर कीर्ति कुमार राठौड़ ने बताया कि एबरनेथी मैल्फोर्मेशन यानी पोटॉकेवल शंट एक ऐसी बीमारी है, जिसमें आंतों से अशुद्ध खून लिवर तक ले जाने वाली नस और शरीर के अंगों तक खून पहुंचाने वाली मुख्य नसों के बीच जॉइंट होता है. इससे लिवर तक खून नहीं पहुंच पाता है. अगर यह जॉइंट लिवर के भीतर होता है तो यह रोग और भी दुर्लभ और खतरनाक हो जाता है. देश में ऐसे 80 केस ही रजिस्टर्ड हैं, इनमें से कुछ ही जीवित बचे हैं. सामान्य तौर पर ऐसे मरीजों का इलाज इंटरनॅशनल रेडियोलॉजी द्वारा एंडोवेस्कुलर विधि से किया जा सकता है. लेकिन इस बच्चे में 2.5 सेमी का जॉइंट था, जो काफी बड़ा था, इसलिए सर्जरी की गई.
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