Nagaur: नागौर के डिडवाना से भारतीय डाक दिवस पर विशेष- एक वक्त था जब एक स्थान से दूसरे स्थान पर अपनी बात पहुंचाने का जरिया केवल डाक या चिट्ठी ही हुआ करती थी. फूल तुम्हें भेजा है खत में जैसे अनगिनत गाने बॉलीवुड फिल्मों में मिल जायेंगे, जो डाक का महत्व बताते हैं. एक समय ऐसा भी था जब ना तो टेलीफोन था, ना मोबाइल, ना इंटरनेट और ना ही व्हाट्सप्प जैसे मेसेंजर एक दूसरे के हाल चाल जानने और सन्देश पहुंचाने का जरिया डाक विभाग ही था. 


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डाक विभाग द्वारा डाक कलेक्शन के लिए लगाया जाने वाला रेड बॉक्स इतना महत्व रखता था, कि हर कोई सोचता कि यह बॉक्स हमारे घर के पास या गली मोहल्ले में लग जाये. जिस गली मोहल्ले में यह बॉक्स होता वो उस मोहल्ले का स्टेटस सिम्बल हुआ करता था. लोग एक दूसरे को पत्र लिखते थे, अपनों के हाल चाल जानने और खुशी या गम बांटने का एक ही जरिया होता था. परदेश में रहने वाले कामगार अपने परिजन और बच्चों के लिए अलग अलग खत लिखा करते थे. दरअसल कलम के जरिये अपनी भावनायें उस कोरे कागज पर उतार दी जाती थी और उस चिट्ठी पत्री को पहुंचाने का काम होता था, डाकिये के जरीए. लोग डाक आने का इंतजार करते थे.


लेकिन संचार क्रांति का युग ऐसा आया कि धीरे धीरे डाक विभाग का असली काम जो डाक विभाग की पहचान थी वो काम होता गया. डाक के जरिये लोगों के आत्मीय भाव एक दूसरे तक पहुंचाने की परम्परा लगभग खत्म होने लगी है. अब लोग अपने अपनों को अपनापन जाहिर करने के लिए चिट्ठियां नहीं लिखते लेकिन उन चिट्ठीयों के साथ ही पत्र लेखन जिसे एक कला माना जाता था वो भी अब केवल इतिहास ही बनकर रह गई है. अब डाकिया लोगों की आत्मीयता या सुख दुख के संदेशे नहीं बांटता, अब डाक विभाग का काम केवल सरकारी चिठ्ठी पत्रियों और कॉर्पोरेट हाउसेज के डाक और पत्रिकायें पहनचाने तक सिमित हो गया है. जिस डाकिये का इंतजार लोग घर के बाहर बैठकर करते थे और कोई चिट्ठी पत्री लाने पर उसका जो स्वागत सत्कार होता था, वो परम्परा भी चिट्ठीयों के साथ ही सिमट गई है. 


संचार क्रांति ने जैसे एक इतिहास को ही लीला लिया हो, क्योंकि अब लोग एक चिट्ठी का हफ्तों इंतजार नहीं कर सकते लेकिन अब सोशल मीडिया के जमाने में लोग एक दूसरे से जुड़े हुए तो हैं, लेकिन आत्मीयता का जो भाव चिट्ठीयों में उतरता था वो अब सोशल मीडिया के जमाने में नहीं रहा.


Reporter - Hanuman Tanwar


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