Rajasthani Leheriya: राजस्थानी लहरिया प्रदेश में ही नहीं पूरे देश में महिलाओं की पसंद बनी हुई है. इसकी डिजाइन और रंग महिलाओं को बेहद पसंद आते हैं.
लहरिया की डिजाइन राजस्थान की लोक कला पर आधारित है. इस प्रिंट की शुरुआत 19 वीं शताब्दी में हुई थी. यह खासकर मेवाड़ से जुड़े स्थानों की संस्कृति में शामिल है. वहीं राज परिवारों में इसका खास महत्व होता है.
राजपरिवारों में इसे पहनने की प्रथा सदियों से चली आ रही है. पुराने जमाने मे नीले रंग की लहरिया राज परिवार की निशानी मानी जाती थी. नीले रंग की लहरिया सिर्फ राज परिवार की बहूएं और बेटियां ही पहनती थीं.
लहरिया का रेत से खास कनेक्शन है. इसकी डिजाइन रेतीली लहरों पर बेस्ड हैं. जब रेगिस्तान में तेज हवाएं चलती हैं, तो रेत पर कुछ ऐसी ही लहरों जौसी डिजाइन बन जाती है. लहरिया का डिजाइन भी इन लेहरों के जैसा ही है.
लहरिया प्रिंट कई रंगों से बनाया जाता है. इसे बनाने के लिए एक ही कपड़े को कई बार डाई कर अलग-अलग रंगों से लहरों जौसी डिजाइन बनाई जाती हैं. इसी के साथ कपड़े को अलग ढंग से बांधकर तिरछी लाइनें उकेरी जाती हैं. इस प्रिंट को बनाने में कारीगरों को काफी मेहनत करना पड़ती है.
सावन में लहरिया पहनने के पीछे का कारण मौसम को उत्सव के रूप में मनाना है. हिंदु समाज में कुछ प्रिंट और रंगों को अच्छे भाग्य का प्रतीक माना जाता है. लहरिया भी इसी का प्रतीक है. शिव-गौरी की पूजा में भी इसका बहुत महत्व माना गया है. खासकर सुहागनों के लिए ये बेहद शुभ होती है.