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Rajasthani Sanganeri Print: 16वीं शताब्दी से जुड़ा है सांगानेरी प्रिंट, राज परिवारों के लिए किया गया था शुरू, मोम-जड़ी बूटियों का होता था प्रयोग

Rajasthani Sanganeri Print: राजस्थान में  सांगानेरी प्रिंट का करीब 1800 करोड़ का करोबार हैं. इस प्रिंट की शुरुआत 16वीं शताब्दी में राज परिवारों के लिए की गई थी.

राजस्थान की सबसे पुरानी कला-सांगानेरी

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राजस्थान की सबसे पुरानी कला-सांगानेरी

सांगानेरी राजस्थान की सबसे पुरानी कला है. इस कला में प्राकृतिक रंगो की सहायता से कपड़े पर डिजाइन उकेरी जाती है. इसकी शुरुआत रॉयल फैमलीज के दौरान की गई थी.  इसकी पहचान ग्लोबली लेबल तक हैं.

सांगानेर से हुई थी शुरुआत

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सांगानेर से हुई थी शुरुआत

सांगानेरी की शुरुआत जयपुर के सांगानेर से हुई थी. सांगानेरी प्रिंट की छपाई 16वीं शताब्दी में शुरू हुई थी. इसे यूरोप में चिंट्ज के नाम से जाना जाता था. इसको लगभग 500 साल पुराना बताया जाता है. छपाई की शुरुआत आमेर के राजपरिवार ने की थी.

इसका प्रिंट एकता का प्रतीक

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इसका प्रिंट एकता का प्रतीक

सांगानेरी प्रिंट में एक लाइन से महीन बेल बनाई जाती है. जैसे एक लाइन में सैनिक खड़े रहते हैं. यह प्रिंट एक तरह से सैनिकों की एकता को प्रदर्शित करता है. पहले इसे छापने के लिए 2 बाय 3 इंच का वुड ब्लॉक यूज होता था, जिसका साइज अब 10 बाय 12 इंच का हो गया है.

समय के साथ बदली डिजाइन

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समय के साथ बदली डिजाइन

समय के साथ इस प्रिंट में काफी बदलाव देखने को मिले हैं. पहले धनिए की बूटी, पतासे, झूले, बेल आदि बनाए जाते थे. अब ट्रेडिसन प्रिंट के साथ कंटेंम्परेरी डिजाइन भी बनाए जा रहे हैं, जो लोगों को बेहद पसंद आ रहे हैं.

आधुनिकीकरण में खो रही कला

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आधुनिकीकरण में खो रही कला

आधुनिकीकरण में कला कही खोती जा रही है. एक्सपर्ट का कहना है कि जो काम करने में 6 महीने लगते थे. अब डिजटलीकरण के कारण 3 दिन में काम हो जाता है. सिंथेटिक रंगो का यूज हो रहा है. पहले की तरह प्राकृतिक रंग प्रयोग नहीं किए जाते हैं.