मुंबई: शिवसेना (Shivsena) ने पश्चिम बंगाल (West Bengal) की सीएम ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) को बड़ा झटका दिया है. शिवसेना ने यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायन्स (UPA) के बिना अलग मोर्चा बनाने से इनकार कर दिया है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चाहती हैं कि बीजेपी (BJP) के खिलाफ यूपीए (UPA) से अलग बाकी क्षेत्रीय पार्टियों का मोर्चा बने.


संजय राउत ने क्या कहा?


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शिवसेना के मुखपत्र के एग्जीक्यूटिव एडिटर और राज्य सभा सांसद संजय राउत ने कहा कि बिना कांग्रेस पार्टी के कोई मोर्चा नहीं बन सकता है. तीसरा-चौथा मोर्चा किसी काम का नहीं है. वोटों का बंटवारा ही होगा. यूपीए को मजबूत करने की जरूरत है. सब मिल बैठकर बात करेंगे. यूपीए के चेयरपर्सन सोनिया गांधी और उनके नेतृत्व पर किसी ने सवाल नहीं उठाया.


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सामना में ममता बनर्जी पर साधा गया निशाना


इसके अलावा शिवसेना के मुखपत्र सामना में भी इशारों ही इशारों में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर निशाना साधा गया है. सामना में लिखा गया कि ममता की राजनीति काग्रेंस उन्मुख नहीं है. पश्चिम बंगाल से उन्होंने कांग्रेस, वामपंथी और बीजेपी का सफाया कर दिया. ये सत्य है फिर भी कांग्रेस को राष्ट्रीय राजनीति से दूर रखकर सियासत करना यानी मौजूदा ‘फासिस्ट’ राज की प्रवृत्ति को बल देने जैसा है.


कांग्रेस खत्म करने की सोच गंभीर खतरा- शिवसेना


सामना में लिखा है कि कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो, ऐसा मोदी और उनकी बीजेपी को लगना समझा जा सकता है. ये उनके कार्यक्रम का एजेंडा है. लेकिन मोदी और उनकी प्रवृत्ति के विरुद्ध लड़ने वालों को भी कांग्रेस खत्म हो, ऐसा लगना सबसे गंभीर खतरा है.


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इतनी ही नहीं सामना ने यूपीए को लेकर भी अपनी बात रखी और लिखा कि बीजेपी की रणनीति कांग्रेस को रोकना है, लेकिन यही रणनीति मोदी या बीजेपी के विरुद्ध मसाल जलाने वालों ने भी रखी तो कैसे होगा? देश में कांग्रेस की नेतृत्व वाली ‘यूपीए’ कहां है? ये सवाल मुंबई में आकर ममता बनर्जी ने पूछा. ये प्रश्न मौजूदा स्थिति में अनमोल है. यूपीए अस्तित्व में नहीं है, उसी तरह एनडीए भी नहीं है. मोदी की पार्टी को आज एनडीए की जरूरत नहीं. लेकिन विपक्षियों को यूपीए की जरूरत है. यूपीए के समानांतर दूसरा गठबंधन बनाना ये बीजेपी के हाथ मजबूत करने जैसा है.


सामना में आगे लिखा है कि वर्तमान में जिन्हें दिल्ली की राजनीतिक व्यवस्था सही में नहीं चाहिए उनका यूपीए का सशक्तिकरण ही लक्ष्य होना चाहिए. कांग्रेस से जिनका मतभेद है, वह रखकर भी यूपीए की गाड़ी आगे बढ़ाई जा सकती है. कई राज्यों में आज भी कांग्रेस है. गोवा और पूर्वोत्तर राज्यों में तृणमूल ने कांग्रेस को तोड़ा लेकिन इससे केवल तृणमूल का दो-चार सांसदों का बल बढ़ा. ‘आप’ का भी वही है. कांग्रेस को दबाना और खुद ऊपर चढ़ना यही मौजूदा विपक्षियों की राजनीतिक चाणक्य नीति है. कांग्रेस को विरोधी पक्षों का नेतृत्व करने का दैवीय अधिकार नहीं मिला हुआ है.


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