Shocking: बस्तर के इस गांव में `पानी` के चलते नहीं हो रही किसी की शादी, लगा खुशियों में ग्रहण
2004-05 तक यहां सब ठीक था लेकिन उसके बाद जैसे इस गांव की खुशियों को ग्रहण लग गया.
अविनाश प्रसाद, बस्तर: क्या आप सोच सकते हैं कि कोई गांव ऐसा भी हो सकता है जहां के अधिकतर निवासी विकलांग हों? जहां बच्चे जवान नहीं बल्कि सीधे बूढ़े हो जाते हों? और जहां लोग शादी के लिए वर-वधु को तरसते हों? यकीन नहीं होता ना? लेकिन ये कोई कल्पना नहीं बल्कि एक कड़वी हकीकत है. छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य जिले बस्तर के बाकेल गांव में स्थितियां ऐसी ही हैं. इस गांव में पिछले 13 वर्षों से लोगों के जीवन में भूचाल सा आ गया है. यहां बच्चे जवान नहीं बल्कि बूढ़े हो रहे हैं. ये कहानी है छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 260 किलोमीटर दूर स्थित बस्तर जिले के बाकेल गांव के एक मोहल्ला ''कुंगाल गुड़ा'' की.
कुछ साल में बदल गई गांव की तस्वीर
आपको बता दें कि बाकेल 300 परिवारों और 1500 की आबादी वाला एक छोटा-सा गांव है. कई अभावों के बावजूद एक दशक पहले तक गांव खुश रहना जानता था. बस्तर की बाकेल ग्राम पंचायत सात टोलों में है. इसी में से एक है कुंगाल गुड़ा. 2004-05 तक यहां सब ठीक था लेकिन उसके बाद जैसे इस गांव की खुशियों को ग्रहण लग गया. गांव बिस्तर और बैसाखियों पर आने लगा. धीरे-धीरे लोगों की कमर झुकने लगी और अब वे सीधे खड़े होने में असक्षम होने लगे. लोगों के पैर टेढ़े होने लगे. दांत झड़ने लगे और यहां तक की लोगों को खुद को घसीट कर आगे बढ़ने की नौबत आने लगी.
यह है असली वजह
12 वर्षों के दौरान अब इस गांव के एक तिहाई लोग विकलांगता की कगार पर पहुंच चुके हैं. गांव के बच्चे जवान होने की बजाय बूढ़े हो चले हैं. किशोरावस्था में ही बालक-बालिकाओं के दांत झड़ गए हैं और वे सीधे खड़े हो पाने में भी असमर्थ हैं. गांव के लोगों ने बताया कि समस्या की वजह पानी में फ्लोराइड की अधिकता की बात पता चली है.
गांव वालों को लगता है देवी का प्रकोप
गांव वालों को यह भी लगता है कि उनकी ये हालत देवी के प्रकोप की वजह से है. उनका कहना है कि यदि फ्लोराइड की समस्या है तो अब तक उसे ठीक हो जाना चाहिए था. गांव वालों का मानना है कि नदी में पुल के बनने की वजह से देवी नाराज हो गई हैं. युवक लखमू 12 वीं पास हैं लेकिन उसे भी लगता है कि शायद देवी का ही प्रकोप हो. वह पुलिस में नौकरी करना चाहता है लेकिन उसके पैर की हड्डियां टेढ़ी होने की वजह से अब वो इस काबिल ही नहीं है.
नहीं सुधर सकतीं टेढ़ी हो चुकी हड्डियां
बस्तर जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ देवेंद्र नाग का कहना है कि उस इलाके में हैंडपंप से निकलने वाले पानी में फ्लोराइड की अधिकता है. आगे की पीढ़ी को इस स्थिति से बचाने के लिए सबसे पहले उन्हें इस पानी से बचाना होगा. जिनकी हड्डियां टेढ़ी हो चुकी हैं उन्हें अब सुधारा नहीं जा सकता. अधिकारी ने बताया कि फ्लोराइड युक्त पानी की वजह से धीरे-धीरे दांत खराब होने लगते हैं और दांत झड़ जाते हैं, हड्डियां कमजोर होने लगती हैं. अधिकारी का कहना है कि अब उस इलाके में कैंप करके नए पीड़ितों का पता लगाया जाएगा.
गांव वालों की भी है मजबूरी
चौका देने वाली बात ये है कि जिस फ्लोराइड युक्त पानी को पीते रहने की वजह से इस गांव की एक तिहाई आबादी विकलांग हो चली है उसी फ्लोराइड से युक्त हैंडपंप का पानी पीने को ग्रामीण अब भी मजबूर हैं. गांव में एकमात्र हैंडपंप काम कर रहा है जिसे लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने केवल निस्तारी के लिए लगा रखा है, उसी के पानी को पीकर गांव के लोग अपनी प्यास बुझा रहे हैं क्योंकि बाकि महीनो में ग्रामीण नदी के पानी से प्यास बुझाया करते थे और पहली बारिश में उसका पानी मटमैला हो गया है. नतीजतन गांव की अगली पीढ़ी भी विकलांग हो रही है.
2005 में लगा था पहला सरकारी हैंडपंप
दरअसल बाकेल गांव में 2005 से पहले लोग कुएं और नदी का पानी पी रहे थे. इसके बाद पहला सरकारी हैंडपंप लगा. इसके पानी में फ्लोरोसिस की मात्रा इतनी अधिक थी कि उसने लोगों की जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया. यहां अब लगभग 500 लोगों की हड्डियों में खराबी है. गांव के 45 वर्षीय लखमू बघेल बताते हैं कि एक साल के अंदर ही उनकी पत्नी के कमर में दर्द शुरू हो गया. धीरे-धीरे कमर झुकने लगी और अब वे सीधी खड़ी नहीं हो पातीं. दो बेटे हैं, दोनों के ही पैर टेढ़े हो गए हैं. जबकि दोनों ही जन्म के समय सामान्य थे, जब तीन-चार साल के हुए तो पैर टेढ़े होने लगे.
500 लोगों की हड्डियां हो चुकी हैं विकृत
गांव में और भी कई बच्चों में ऐसी समस्या होने लगी तो स्वास्थ्य शिविर लगा. रहमत बघेल के नौ साल के बेटे वासुदेव का भी दाहिना पैर टेढ़ा हो गया है. इसी तरह गुदराम बघेल की 40 वर्षीय पत्नी सीधी खड़ी नहीं हो पातीं. हरदू बघेल (55 वर्ष) की पत्नी डाला बघेल की 10 साल से कमर टेढ़ी है, इसके कारण चल नहीं पातीं. उनकी 18 साल की बेटी लचन देई के पैर टेढ़े हो गए हैं. किसी तरह मजदूरी कर वह परिवार चला रही हैं. इसी तरह देखते ही देखते 1500 की आबादी वाले गांव में 500 लोगों की हड्डियों में विकृति आ गई है.
चल तक नहीं पाते हैं बुजुर्ग
बीमारी के अत्यधिक प्रभाव के कारण गांव के बुजुर्ग चल तक नहीं पाते. उन्हें उनके बच्चे और नाती-पोते ही नित्यकर्म करवाते और खाना तक अपने हाथों से खिलाते हैं. दर्जनों अधेड़ महिलाएं झुकी कमर की वजह मुश्किल से ही चल पाती हैं और उनके पति झाड़ू, पोछा से लेकर खाना बनाने तक का काम करते हैं. अब आलम ये है कि विकलांग और कार्य कर पाने में असमर्थ यहां के युवक-युवतियों का विवाह भी नहीं हो पा रहा है. लोग इस गांव में अब रिश्ता ही नहीं करना चाहते.
शुरुआत में हुए कई दौरे
दरअसल, इस भयानक त्रासदी से पीड़ित गांव से शासन-प्रशासन ने मुंह मोड़ रखा है. शुरुआती दिनों में खानापूर्ति के नाम पर लगभग 8 वर्ष पहले नेताओं और अधिकारियों ने इस इलाके के दौरे किए. यहां फ्लोराइड युक्त पानी के हैंडपंपों को बंद किया गया. 2 किलोमीटर दूर से पानी की व्यवस्था की गई और मशीनें भी लगाई गईं लेकिन सब या तो भ्रष्टाचार की या उपेक्षा की भेंट चढ़ गए. आज स्थिति जस की तस है.
कलेक्टर ने दी ये सलाह
इस मामले पर बस्तर जिले के कलेक्टर धनंजय देवांगन का कहना है कि भले ही ग्रामीणों को अधिक शारीरिक श्रम करना पड़े लेकिन उन्हें गांव के फ्लोराइड युक्त पानी वाले श्रोतों से पानी पीना बंद कर देना चाहिए.