नई दिल्ली: सच तय करने का काम सरकारों (Governments) पर नहीं छोड़ा जा सकता है, बल्कि नागरिकों के तौर पर हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रेस किसी भी तरह के राजनीतिक या आर्थिक प्रभाव से मुक्‍त हो. फेक न्‍यूज को लेकर यह अहम टिप्‍पणी सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) की है. शनिवार को छठे एम सी छागला स्मृति व्याख्यान में लॉ कॉलेजों, विश्वविद्यालयों के छात्रों और फैकल्‍टी को संबोधित करते हुए उन्‍होंने यह बात कही. 


वैज्ञानिकों, रिसर्चर्स की राय भी हो सकती है गलत 


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जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि यहां तक ​​कि वैज्ञानिकों, सांख्यिकीविदों, अनुसंधानकर्ताओं और अर्थशास्त्रियों जैसे विशेषज्ञों की राय भी हमेशा सच नहीं हो सकती है. भले ही उनकी कोई राजनीतिक संबद्धता न हो लेकिन उनके दावों पर किसी वैचारिक लगाव, वित्तीय सहायता की प्राप्ति या व्यक्तिगत द्वेष का प्रभाव हो सकता है. उन्होंने कहा, 'इस तरह हम मान सकते हैं कि राष्ट्र की सभी नीतियों हमारे समाज की सच्चाई के आधार पर बनी हैं. हालांकि, इससे यह मतलब नहीं है कि सरकारें राजनीतिक कारणों से झूठ में लिप्त नहीं हो सकती, भले ही वह लोकतांत्रिक देश क्‍यों न हो. वियतनाम युद्ध में भी अमेरिका की भूमिका पेंटागन पेपर्स के प्रकाशित होने तक सामने नहीं आयी थी.'


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कोविड आंकड़ों पर बोले गए झूठ 


जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस दौरान Covid-19 महामारी का जिक्र करते हुए कहा, 'हमने देखा कि दुनिया भर में देशों ने कोविड​​​​-19 संक्रमण के मामलों और मौतों के आंकड़ों में हेरफेर करने की कोशिश की है. लिहाजा हमें तय करना होगा कि हमारे सार्वजनिक संस्थान मजबूत बनें. नागरिकों के रूप में, हमें यह सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए कि हमारे पास एक ऐसा प्रेस (Press) हो जो किसी भी प्रकार के राजनीतिक या आर्थिक प्रभाव से मुक्त हो और वो हमें निष्पक्ष तरीके से जानकारी प्रदान करे.'


उन्‍होंने आगे कहा, 'फर्जी समाचार' या झूठी सूचना बताना कोई नई प्रवृत्ति नहीं है, बल्कि ये तब से ही है जब‍ से प्रिंट मीडिया अस्तित्व में आया है, लेकिन टेक्‍नॉलाजी की तरक्‍की और इंटरनेट की बढ़ती पहुंच ने इस समस्‍या को बहुत बढ़ा दिया है. सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म ने विचारों का ध्रुवीकरण किया है. इससे हमारे समुदायों के बड़े मुद्दों की अनदेखी हुई है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि 'फर्जी समाचार' सामने आने के मामले बढ़ रहे हैं.


लोकतंत्र के लिए सच की ताकत जरूरी 


जस्टिस चंद्रचूड़ ने बलपूर्वक सत्य बोलना: नागरिक एवं कानून' विषय पर आगे कहा कि लोकतंत्र को जीवित रहने के लिए सच की ताकत की जरूरत होती है. ऐसे में यह माना जा सकता है कि बलपूर्वक सत्य बोलना लोकतंत्र में नागरिक को मिले अधिकार के साथ-साथ उसका कर्तव्य भी है.


उन्‍होंने मशहूर दार्शनिक हाना आरेंट के एक कोट का हवाला देत हुए कहा, 'अधिनायकवादी सरकारें अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए झूठ पर भरोसा करती हैं. आधुनिक लोकतंत्र में ऐसा सच और निर्णय अहम है जिसके पीछे पर्याप्‍त तर्क हों, लेकिन झूठे तर्क बेबुनियाद होते हैं.