नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आश्चर्य जताया कि गुजरात हाईकोर्ट ने कथित एनजीओ गबन मामले में सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और उनके पति को अग्रिम जमानत दे दी और साथ ही उनके जांच में सहयोग नहीं करने पर पुलिस को उनकी हिरासत मांगने की छूट भी दी. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘‘अगर जांच अधिकारी को पुलिस हिरासत (मांगने) की आजादी और अग्रिम जमानत दी जाती है तो क्या ये दोनों एक साथ अस्तित्व में रह सकते हैं. जांच अधिकारी को जब पुलिस हिरासत मिलती है तो अग्रिम जमानत खत्म हो जाती है.’’


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पीठ ने कहा कि वह खुद से सवाल पूछ रही है कि क्या इस तरह का आदेश पारित किया जा सकता है. पीठ ने कहा, ‘‘आप पुलिस हिरासत की प्रार्थना कैसे कर सकते हैं. हम खुद से यह पूछ रहे हैं. आप पुलिस हिरासत कैसे मांग सकते हैं.’’ पीठ ने हाईकोर्ट के आठ फरवरी के फैसले के खिलाफ दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां कीं.


शीर्ष अदालत ने सोमवार को इस मामले पर गौर किया जिसमें सीतलवाड़ और उनके पति के खिलाफ 31 मार्च 2018 को प्राथमिकी दर्ज की गई थी. उन पर 2010 से 2013 के बीच अपने एनजीओ ‘सबरंग’ के लिए ‘‘धोखे से’’ 1.4 करोड़ रुपये का केंद्र सरकार का धन कथित रूप से हासिल करने का आरोप है.


(इनपुट भाषा से)