मस्जिद पक्षकार के अधिवक्ता एस एफ ए नक़वी का कहना है की वाराणसी न्यायालय सिविल जज द्वारा 8 अप्रैल को पारित आदेश 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का खुले तौर पर उल्लंघन है. 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के तहत उन्होने मंदिर पक्ष की याचिका को औचित्यहीन बताते हुए वाराणसी सिविल जज के 8 अप्रैल को पारित आदेश पर रोक लगाने की मांग की है.
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मो. गुफरान/प्रयागराज: स्वयंभू भगवान विशेश्वर नाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का एएसआई सर्वेक्षण के आदेश पर रोक लगाए की मांग को लेकर दाखिल याचिका पर 9 सितंबर गुरुवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट फैसला सुना सकता है. हाईकोर्ट ने 31 अगस्त को मंदिर और मस्जिद पक्षकारों की दलीलों को सुनने के बाद फैसले के लिए 9 सितंबर की तारीख नियत की.
अंजुमन इन्तेजामियां कमेटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की तरफ से याचिका दाखिल की गई है. जस्टिस प्रकाश पाडिया की एकल पीठ ने मामले की सुनवाई की. हाईकोर्ट में मस्जिद इंतेजामियां कमेटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की तरफ से दाखिल याचिका में मांग की गई है कि वाराणसी के सिविल जज द्वारा 8 अप्रैल 2021 को मस्जिद परिसर का एएसआई सर्वेक्षण करने के आदेश पर रोक लगाई जाए. याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया है कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 के तहत 15 अगस्त 1947 के पहले के किसी भी धार्मिक प्लेस में कोई भी तब्दीली या फेरबदल नहीं किया जा सकता.
मस्जिद पक्षकार के वकील का कहना है
मस्जिद पक्षकार के अधिवक्ता एस एफ ए नक़वी का कहना है की वाराणसी न्यायालय सिविल जज द्वारा 8 अप्रैल को पारित आदेश 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का खुले तौर पर उल्लंघन है. 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के तहत उन्होने मंदिर पक्ष की याचिका को औचित्यहीन बताते हुए वाराणसी सिविल जज के 8 अप्रैल को पारित आदेश पर रोक लगाने की मांग की है.
मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया-मंदिर पक्षकारों
मंदिर पक्षकारों का कहना है कि 1664 में मुगल शासक औरंगजेब ने मंदिर को तोड़कर उसके अवशेषों पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया था जिसकी वास्तविकता जानने के लिए मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण कराना जरूरी है. मंदिर पक्ष का दावा है की मस्जिद परिसर की खुदाई के बाद मंदिर के अवशेषों पर तामीर मस्जिद के सबूत अवश्य मिलेंगें. इस लिए एएसआई सर्वेक्षण किया जाना बेहद जरूरी है. मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण से यह साफ हो सकेगा की मस्जिद जिस जगह तामीर हुई है वह जमीन मंदिर को तोड़कर बनाई गई है या नहीं.
मंदिर पक्ष की याचिका पर वाराणसी की न्यायालय ने सुनवाई शुरू की
गौरतलब है कि 1991 में ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर विवाद मामले में एक सिविल सूट वाराणसी की न्यायालय में दाखिल हुआ था. जिसको मस्जिद पक्षकारों की तरफ से इलाहाबाद हाई कोर्ट में चैलेंज किया गया था और हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई पर 1997 में रोक लगा दी थी. लेकिन मंदिर पक्षकारों की तरफ से दोबारा वाराणसी के सिविल कोर्ट में याचिका दाखिल कर सुनवाई की मांग गई. जिसमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया गया की स्थगन आदेश की तारीख के 6 महीने बीतने के बाद स्वतः स्थगन आदेश समाप्त हो चुका है. मंदिर पक्ष की याचिका पर वाराणसी की न्यायालय ने सुनवाई शुरू की.
मस्जिद पक्ष ने दाखिल की इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनवरी 2021 में याचिका
जिसके खिलाफ दोबारा मस्जिद पक्ष ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनवरी 2021 में याचिका दाखिल की. जिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस प्रकाश पाडिया की सिंगल बेंच ने सुनवाई के बाद 15 मार्च 2021 को फैसला सुरक्षित कर लिया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला अभी तक नहीं आ सका है. इसी बीच 8 अप्रैल को वाराणसी की सिविल कोर्ट ने पांच सदस्यीय कमेटी बनाकर मस्जिद परिसर का एएसआई सर्वेक्षण का आदेश पारित कर दिया. इसी आदेश पर रोक लगाए जाने की मांग को लेकर दोबारा मस्जिद पक्षकारों की तरफ से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई.
एएसआई और राज्य सरकार से पूरे मामले पर 28 सितंबर तक मांगा जवाब
हाईकोर्ट ने 31 अगस्त को दोनों पक्षों को सुनने के बाद एएसआई सर्वेक्षण पर वाराणसी सिविल कोर्ट के फैसले पर रोक लगाए जाने की मांग वाली याचिका पर आदेश के लिए 9 सितंबर की तारीख नियत की है। साथ ही केंद्र सरकार, एएसआई और राज्य सरकार से कोर्ट ने इस पूरे मामले पर 28 सितंबर तक जवाब मांगा है.
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