Who is KK Nayar (Ram janmbhoomi andolan unsung heroes) : राम मंदिर संघर्ष से जुड़े कई कहानी किस्से हैं. इन्हीं में से एक है केके नायर की. केके नायर की भी राम मंदिर संघर्ष की लड़ाई में अहम योगदान रहा है.
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Who is KK Nayar : अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनकर तैयार हो गया है. 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होनी है. ऐसे में 500 साल पुरानी संघर्ष की कहानी पर रामभक्तों की जीत होगी. राम मंदिर संघर्ष से जुड़े कई कहानी-किस्से हैं. इन्हीं में से एक है केके नायर की. केके नायर की भी राम मंदिर संघर्ष की लड़ाई में अहम योगदान रहा है. तो आइये जानते हैं कौन थे केके नायर?.
कितनी अहम भूमिका थी केके नायर की
दरअसल, केके नायर का पूरा नाम कडनगालाथिल करुणाकरन नायर था. वह उस समय फैजाबाद के जिलाधिकारी थे. केके नायर वही व्यक्ति हैं जिन्होंने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के आदेश का पालन नहीं किया. केके नायर का संघर्ष वाकई अमूल्य है. क्योंकि केरल में पैदा होने वाले केके नायर ने राम मंदिर निर्माण के लिए वर्ष 1949 में ही पूरी कांग्रेस और देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू से दुश्मनी मोल ली. अयोध्या के DM पद की नौकरी चली गई. लेकिन वो कभी रुके नहीं.
अपनी नौकरी तक त्याग दी
राम मंदिर निर्माण के लिए कई कारसेवकों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी. हर किसी की सिर्फ यही चाहत थी कि रामलला तंबू में नहीं, बल्कि भव्य मंदिर में विराजमान हों. इस सपना अब साकार होने जा रहा है. केके नायर ने इस सपने को साकार करने में काफी अहम भूमिका निभाई. उन्होंने राजनीतिक दबावों को ठेंगा दिखाते हुए अपनी नौकरी को त्याग दिया और काफी संघर्ष किया.
नेहरू के फरमान को नकारा
बताया जाता है कि अयोध्या में जब 22 और 23 दिसंबर 1949 की रात भगवान राम की मूर्तियां बाबरी मस्जिद में प्रकट होती है तो नेहरू केके नायर को खत लिखते हैं. अपने खत में वो नायर को आदेश देते हैं कि मस्जिद से मूर्तियों को हटा दिया जाए. नेहरू ऐसा केवल एक बार नहीं बल्कि दो बार करते हैं. दोनों ही बार केके नायर नेहरू के आदेशों का पालन नहीं करते. अगर केके नायर ने उस वक्त भगवान राम की मूर्तियों को वहां से हटवा दिया होता, तो शायद आज भगवान राम के भव्य मंदिर का निर्माण आज अयोध्या में न हो रहा होता.
कौन थे केके नायर?
केरल में जन्मे के के नायर ने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद इंग्लैंड चले गए और मगज 21 वर्ष की आयु में ही उन्होंने भारतीय सिविल सेवा (ICS) की परीक्षा क्लीयर कर ली. इसके बाद 1 जून सन् 1949 में उन्हें अयोध्या (फैजाबाद) के उपायुक्त सह जिला मजिस्ट्रेट के रूप में नियुक्त किया गया था. नायर के फैसले ने उन्हें इतिहास में अमर कर दिया.
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