गोलियों से सीने छलनी होते रहे, मगर गिरने न दिया तिरंगा, गाजीपुर के उन 8 शहीदों की जरा याद करो कुर्बानी
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गोलियों से सीने छलनी होते रहे, मगर गिरने न दिया तिरंगा, गाजीपुर के उन 8 शहीदों की जरा याद करो कुर्बानी

Independence Day Special Story: महात्मा गांधी के 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन और उससे भी एक कदम आगे 'करो या मरो' के नारे ने देशभर के साथ गाजीपुर में क्रांति की लहर फूंक दी थी. गाजीपुर के 8 युवा क्रांतिकारियों की एक टोली ने मोहम्मदाबाद तहसील पर तिरंगा फहराने के लिए हंसते-हंसते सीने पर गोलियां खाईं और शहीद हो गए थे.

 

गोलियों से सीने छलनी होते रहे, मगर गिरने न दिया तिरंगा, गाजीपुर के उन 8 शहीदों की जरा याद करो कुर्बानी

India Independence and Ghazipur: शहीदों की चिताओं पर हर बरस लगेंगे मेले, वतन पर मर मिटने वालों का बस यही बाकी निशां होगा. गाजीपुर की मोहम्मदाबाद तहसील में बना शहीद स्मारक भी ऐसे ही 8 क्रांतिकारियों की शहादत याद दिलाता है जो 18 अगस्त 1942 को मोहम्मदाबाद तहसलील पर तिरंगा फहराने के लिए सीने पर गोली खाकर गिरते रहे लेकिन तिरंगा हाथों से गिरना न दिया. क्या है देशभक्ति की ये पूरी कहानी आपको बताते हैं. 

भारत छोड़ो आंदोलन और गाजीपुर
क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद महात्मा गांधी ने मुंबई के कांग्रेस अधिवेशन में अपने तीसरे बड़े आंदोलन का ऐलान किया, जिसे भारत छोड़ो आंदोलन का नाम दिया. इस आंदोलन में भागीदारी के लिए देशवासियों से गांधी जी के आह्वान की देरी थी कि पूरे देश में "अंग्रेजों भारत छोड़ो" का नारा गूंजने लगा. उत्तर प्रदेश का गाजीपुर भी इस नारे से अछूता नहीं रहा.  9 अगस्त 1942 को गांधी जी समेत इस आंदोलन के बड़े नेताओं गिरफ्तार करने से देशभर में आंदोलन की आग और भड़क उठी.  क्रांतिकारी अब सच में 'करो या मरो' की जिद कर चुके थे. 

यूनियन जैक की जगह तिरंगे की जिद्द
18 अगस्त 1942 का दिन था जब गाजीपुर के शेरपुर गांव सैकड़ों युवा डॉक्टर शिव पूजन राय के नेतृत्व में मोहम्मदाबाद तहसील की तरफ कूच करने लगे. उन्होंने तहसील पर लगे यूनियन जैक को उतारकर तिरंगा फहराने का फैसला किया था. अहरौली गांव के पास डॉक्टर शिवपूजन राय एक टूटे पेड़ की डाल पर चढ़कर सैकड़ों युवा सेनानियों को संबोधित किया. 

पूरी तरह से अंहिसात्मक था कार्यक्रम
शिवपूजन राय ने युवाओं से कहा कि यह लड़ाई गांधी जी सिद्धांतों पर लड़नी है इसलिए कोई भी अपने साथ किसी भी तरह का हथियार यानी कि लाठी तक अपने साथ न लेकर चले. अगर किसी ने पत्थर का एक छोटा टुकड़ा भी किसी को मार दिया तो गांधी जी आहत होंगे. जिसके बाद वहां मौजूद सेनानियों ने अपने-अपने लाठी डंडे वहीं रखे छोड़े और दो गुट में बंटकर मोहम्मदाबाद तहसील की तरफ बढ़ चले. 

दो गुटों में आगे बढ़े सेनानी 
एक गुट का नेतृत्व ऋषेश्वर राय कर रहे थे और दूसरे गुट का नेतृत्व शिवपूजन राय कर रहे थे. सेनानियों के दोनों गुट कुछ ही देर में मोहम्मदाबाद तहसील के सामने थे. मौके पर मौजूद तहसीलदार मुनरो ने आगे ना बढ़ने की चेतावनी दी लेकिन युवा सेनानी तिरंगा हाथ में तिरंगा लेकर आगे बढ़ते रहे. 

सीने पर गोलियां खाकर 8 जवान शहीद
तहसीलदार ने फायरिंग का आदेश दे दिया लेकिन मजाल है आजादी के मतवालों ने इसकी जरा भी परवाह की हो. गोलियों की तड़तड़ाहट में जो आगे बढ़ा... छलनी होकर गिरता गया, लेकिन गिरने से पहले तिरंगा एक दूसरे को देते गए. और इस तरह से शिवपूजन राय और श्रषेवर राय समेत कुल 8 जवान शहीद हो गए. लेकिन जवानों ने मोहम्मदाबाद तहसील पर उस दिन तिरंगा फहरा ही दिया. 

स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में गाजीपुर 
इस तरह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में गाजीपुर का यह दिन भी दर्ज हो गया. गाजीपुर के इन सबूतों का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया और उनकी शहादत आज भी याद की जाती है. 

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