आलौकिक शक्तियों का कुंज है ये शक्तिपीठ, दीप जलाने से होती हैं हर मनोकामना पूरी
नवरात्रि के पावन दिनों में zeeupukआपके लिए लाया है हर रोज एक शक्तिपीठ की कहानी. हिंदू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आए. आज बात करेंगे हरिसिद्धि शक्तिपीठ के बारे में
आज सांतवां नवरात्रि है. नवरात्रि के समय शक्तिपीठ मंदिरों के दर्शन करने का खास महत्व होता है. आज हम देवी के ऐसे ही प्राचीन मंदिर के बारे में बताएंगे, जिसका महत्व काफी है. मध्य प्रदेश के उज्जैन में हरसिद्धि (Ujjain Harsiddhi temple) माता का मंदिर स्थित, जिसकी मान्यता दूर-दूर तक प्रचलित है.
मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में महाकाल के बाद हरसिद्धि माता की पूजा की जाती है. उज्जैन की रक्षा के लिए आस-पास देवियों का पहरा है, उनमें से एक हरसिद्धि देवी भी हैं. हरसिद्धि देवी का मंदिर देश की शक्तिपीठों में से एक है. शिवपुराण के अनुसार दक्ष प्रजापति के हवन कुंड में माता के सती हो जाने के बाद भगवान भोलेनाथ सती को उठाकर ब्रह्मांड में ले गए थे, ले जाते समय इस स्थान पर माता के दाहिने हाथ की कोहनी और होंठ गिरे थे और इसी कारण से यह स्थान भी एक शक्तिपीठ बन गया.
इस मंदिर का वर्णन पुराणों में देखने को मिलता है. मंदिर में दो विशाल दीप स्तंभ हैं. मंदिर परिसर में ही परमार कालीन बावड़ी है. गर्भगृह में देवी श्रीयंत्र पर विराजमान हैं. सभामंडप में ऊपर की ओर भी श्रीयंत्र बनाया गया है. इस यंत्र के साथ ही देश के 51 देवियों के चित्र बीज मंत्र के साथ चित्रित हैं. नवरात्रि में यहां उत्सव जैसा महौल रहता है. यहां की देवी का तांत्रिक महत्व भी है. कहा तो ये भी जाता है कि यहां पर स्तंभ दीप जलाने का सौभाग्य हर किसी को नहीं मिलता. और जिसको मिलता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है.
राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी थीं हरसिद्धि माता
ऐसा कहा जाता है कि हरसिद्धि माता राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी थीं और वो उनके परम भक्त माने जाते थे. वहीं इस मंदिर को लेकर पौराणिक कथा है कि राजा विक्रमादित्य हर 12 साल में देवी के चरणों में अपने सिर को अर्पित कर देते थे, लेकिन हरसिद्धि मां की कृपा और चमत्कार से उनका सिर दोबारा आ जाता था. लेकिन जब राजा ने 12वीं बार अपना सिर माता रानी के चरणों में चढ़ाया तो वो वापस नहीं जुड़ सका और उनकी विक्रमादित्य की जीवन लीला यहीं समाप्त हो गई.
एक कोने में पड़े हुए हैं मुण्ड
आज भी मंदिर के एक कोने में 11 सिंदूर लगे मुण्ड पड़े हैं. कहते हैं ये उन्हीं के कटे हुए मुण्ड हैं. मान्यता है कि सती के अंग जिन 52 स्थानों पर अंग गिरे थे, वे स्थान शक्तिपीठ में बदल गए और उन स्थानों पर नवरात्र के मौके पर आराधना का विशेष महत्व है.
संध्या आरती का विशेष महत्व
किवदंती तो ये भी है कि माता हरसिद्धि सुबह गुजरात के हरसद गांव स्थित हरसिद्धि मंदिर जाती हैं और रात्रि विश्राम के लिए शाम को उज्जैन स्थित मंदिर आती हैं, इसलिए यहां की संध्या आरती का विशेष महत्व माना जाता है. माता हरसिद्धि की साधना से समस्त प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं. इसलिए नवरात्रि में यहां साधक साधना करने आते हैं. हरसिद्धि देवी की आराधना करने से शिव और शक्ति दोनों की पूजा हो जाती है. ऐसा इसलिए कि ये एक ऐसा स्थान है, जहां महाकाल और मां हरसिद्धि के दरबार हैं.
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