नवरात्रि में 9 शक्तिपीठ: चमत्‍कारी हैं मां नैना देवी, दर्शन करने मात्र से दूर हो जाती हैं आंखों की बीमारियां
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नवरात्रि में 9 शक्तिपीठ: चमत्‍कारी हैं मां नैना देवी, दर्शन करने मात्र से दूर हो जाती हैं आंखों की बीमारियां

नैनादेवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में है. ऐसी मान्यता है कि यहां देवी सती के नेत्र गिरे थे. लोगों की आस्था है कि यहां पहुंचने वालों की आंखों की बीमारियां दूर हो जाती हैं. 

फाइल फोटो

नवरात्रि में दुर्गाजी की उपासना के चौथे दिन की पूजा का अत्याधिक महत्त्व है. माँ दुर्गा जी के चौथे स्वरुप का नाम कूष्माण्डा है. नवरात्रि उपासना में चौथे दिन इन्ही के विग्रह का पूजन-की आराधना की जाती है.

नवरात्रि के पावन दिनों में zeeupuk आपके लिए लाया है हर रोज एक शक्तिपीठ की कहानी. आज  नवरात्रि का चौथा दिन हैं. आज हम आपको बताएंगे चौथे शक्तिपीठ के बारे में. ये शक्तिपीठ है हिमाचल प्रदेश में स्थित नैना देवी मंदिर..शक्तिपीठ श्रीनयना देवी हिमाचल नहीं देश-विदेश के लोगों की आस्था का केंद्र है. यह 51 शक्ति पीठों में से एक है. आइए जानते हैं इस रहस्यमयी मंदिर के बारे में. 

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नैनादेवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में है. ऐसी मान्यता है कि यहां देवी सती के नेत्र गिरे थे. लोगों की आस्था है कि यहां पहुंचने वालों की आंखों की बीमारियां दूर हो जाती हैं. यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है. 

आस्था का केंद्र है नैना देवी
मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं. शक्तिपीठ श्रीनयना देवी हिमाचल नहीं देश-विदेश के लोगों की आस्था का केंद्र है. यह 51 शक्ति पीठों में से एक है, जहां मां सती के अंग पृथ्वी पर गिरे थे.

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शक्तिपीठ में श्रद्धालुओं की अटूट श्रद्धा
पौराणिक काल से ही इस शक्तिपीठ में श्रद्धालुओं की अटूट श्रद्धा है. मां भक्तों की सभी मन्नतें पूरी करती हैं. बिलासपुर जिला और पंजाब सीमा के साथ समुद्र तल से 1177 मीटर की ऊंचाई पर मां श्रीनयना देवी की स्थली है. यहां पर नवरात्र में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है. ऐसी मान्यता है कि यहां देवी के दर्शन मात्र से नेत्र से जुड़ी समस्याएं दूर हो जाती हैं. इस मंदिर के अंदर नैना देवी मां की दो नेत्र बने हुए हैं. मंदिर के अंदर नैना देवी के संग भगवान गणेश जी और मां काली की भी मूर्तियां हैं.

नंदा देवी भी कहते हैं
नैनीताल स्थित नैनी झील के उत्तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर अत्यंत प्राचीन है और 1880 में भूस्खलन से यह मंदिर नष्ट हो गया था, लेकिन बाद में इस मंदिर का निर्माण फिर से किया गया. मंदिर के प्रवेशद्वार पर पीपल का एक बड़ा और घना पेड़ है. यहां नैना देवी को देवी पार्वती का रूप माना जाता है और इसी कारण उन्हें नंदा देवी भी कहा जाता है. देवी का ये मंदिर शक्तिपीठ में शामिल है और इसी कारण यहां देवी के चमत्कार देखने को मिलते हैं. नैना देवी मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और मां उनकी मनोकामनाएं पूरी करती हैं.

इस शक्तिपीठ के बारे में कथा प्रचलित
एक बार माता सती के पिता प्रजापति दक्ष ने बड़ा यज्ञ कराया लेकिन उस यज्ञ में उन्होंने माता सती और उनके पति भगवान शिव को न्योता नहीं दिया. फिर भी सती से हठ किया और वो यज्ञ में बिना बुलाए ही जा पहुंचीं. जहां राजा दक्ष ने उनके समक्ष भोलेनाथ को खूब अपमानित किया. पति के लिए ऐसे कटु वचन सती सह ना सकी और उन्होंने हवन कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिया. जब भगवान शिव को इस बारे में पता चला तो वे काफी क्रोधित हुए और गुस्से में उन्होंने रौद्र रूप धारण कर खूब तांडव किया और विध्वंस मचाया. वो सती के शव को लेकर घूमने लगे.  

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भगवान शिव का ऐसा रूप देख देवतागण परेशान हो उठे और फिर उन्होंने भगवान विष्णु से शिव को शांत कराने की प्रार्थना की. तब विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता शरीर के 51 टुकड़े किए और जहां ये टुकड़े गिरे वो शक्तिपीठ कहलाए. इन्हीं में से दो शक्तिपीठ हिमाचल के बिलासपुर और उत्तराखंड के नैनीताल में भी मौजूद है. कहते हैं इन जगहों पर माता सती के नयन गिरे थे इसीलिए ये नैना देवी मंदिर कहलाए.

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नैनी झील का जानें महत्व
नैना देवी मंदिर की तरह नैनी झील को भी बहुत पवित्र माना गया है. एक दंत कथा के अनुसार जब अत्री, पुलस्त्य और पुलह ऋषि को नैनीताल में कहीं पानी नहीं मिला तो  उन्होंने एक गड्ढा खोदा और मानसरोवर झील से पानी लाकर इममें भर दिया। तब से यहां कभी भी पानी कम नहीं हुआ और ये झील बन गई. मान्यता है कि झील में डुबकी लगाने से उतना ही पुण्य मिलता है जितना मानसरोवर नदी में नहाने से मिलता है.

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