देहरादून: उत्तराखंड में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं. उससे पहले पार्टियों की ओर से लोकलुभावन वादों का दौर जारी है. बीते दिनों उत्तराखंड के ऊर्जा मंत्री हरक सिंह रावत ने हर परिवार को 100 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने का ऐलान किया था. फिर क्या था, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 11 जुलाई को देहरादून पहुंचे थे. उन्होंने उत्तराखंड वासियों को 300 यूनिट और किसानों को बिल्कुल मुफ्त बिजली देने का वादा कर डाला.


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तो क्या वाकई में उत्तराखंड इस स्थिति में है कि अगले दो से चार सालों में अपने नागरिकों को मुफ्त बिजली दे सके? दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के इस ऐलान से उत्तराखंड के ऊर्जा मंत्री कतई सहमत नहीं हैं. उनका कहना है कि फिलहाल यह संभव नहीं है. उनका कहना है कि पहले उत्तराखंड को 5 से 7 साल हाइड्रो प्रोजेक्ट या सोलर प्रोजेक्ट के क्षेत्र में मेहनत करनी पड़ेगी. उसके बाद जाकर राज्य इस स्थिति में आएगा.


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हरक सिंह रावत ने बताया कि मौजूदा वक्त में उत्तराखंड को अपने इस्तेमाल के लिए दो तिहाई बिजली खरीदनी पड़ती है. राज्य जिस दिन बिजली खरीदने की बजाय बेचने की स्थिति में आ जाएगा, तब नागरिकों को 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली देना संभव होगा. ऊर्जा मंत्री हरक सिंह रावत के माने तो प्रदेश में 23 लाख घरेलू कनेक्शन है, 14 लाख के आसपास ऐसे हैं जो 200 यूनिट से कम बिजली खर्च करते हैं. सात से आठ लाख कनेक्शन ऐसे हैं जो 100 यूनिट से कम की बिजली खपत करते हैं.


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उन्होंने कहा कि 100 यूनिट मुफ्त बिजली देने में ही करीब 250 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ सरकारी खजाने पर आएगा, जबकि 200 यूनिट मुफ्त बिजली देने में तकरीबन 500 करोड़ का. राज्य अभी ऐसी स्थिति में नहीं है कि 300 यूनिट बिजली मुफ्त दे सके. हरक सिंह रावत का कहना है कि ऐसे में अरविंद केजरीवाल ने जो घोषणा थी वह गले नहीं उतर सकती. यह संभव नहीं है. ऊर्जा मंत्री के मुताबिक पहले हाइड्रो प्रोजेक्ट क्षेत्र में बहुत मेहनत करनी पड़ेगी. 


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उत्तराखंड के ऊर्जा मंत्री ने कहा कि हमारी जल विद्युत परियोजनाएं उतनी नहीं हैं और 20 सालों में उन्हें बढ़ाया भी नहीं गया है. जिस तेजी के साथ हमको काम करना चाहिए था उस तेजी के साथ हम काम नहीं कर पाए हैं. दरअसल, अरविंद केजरीवाल की पार्टी उत्तराखंड के अलावा, पंजाब और गोवा में भी फ्री बिजली, पानी को चुनावी मुद्दा बना रही है और दिल्ली का उदाहरण देती है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि उत्तराखंड की माली हालत पहले से ही बहुत बेहतर नहीं है. इस पहाड़ी राज्य को अक्सर कर्ज लेना पड़ता है.


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