ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. इसके पहले भी जब भी बात फर्ज की आई सीएम योगी ने इस परंपरा को तोड़ा है. इस बार के अभूतपूर्व संकट में तो वह गोरक्षनाथ मंदिर गए ही नहीं.
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लखनऊ: गोरक्षनाथ पीठ के लिए नवरात्रि बेहद खास है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस पीठ के पीठाधीश्वर भी हैं. नवरात्रि के पहले दिन से ही गोरक्षनाथ मंदिर में अनुष्ठान शुरू हो जाता है. सारी व्यवस्था मठ के पहली मंजिल पर ही होती है. परंपरा है कि इस दौरान पीठाधीश्वर और उनके उत्तराधिकारी मठ से नीचे नहीं उतरते. पूजा के बाद रूटीन के काम और खास मुलाकातें ऊपर ही होती हैं. समापन नवमी के दिन कन्या पूजन से होता है. जिसे पीठ के उत्तराधिकरी या पीठाधीश्वर करते हैं.
वर्षों से योगी आदित्यनाथ इस परंपरा को निभाते रहे हैं. इस बार कोरोना वायरस संक्रमण के कारण लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के मानकों के अनुपालन में उन्होंने कन्या पूजन भी नहीं किया. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. इसके पहले भी जब भी बात फर्ज की आई सीएम योगी ने इस परंपरा को तोड़ा है. इस बार के अभूतपूर्व संकट में तो वह गोरक्षनाथ मंदिर गए ही नहीं. जहां रहे वहीं परंपरा के अनुसार पूजा-पाठ किया.
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साल 2014 में योगी ने पहली बार तोड़ी थी परम्परा
30 सितम्बर 2014 की बात है. गोरखपुर कैंट स्टेशन के पास नंदानगर रेलवे क्रासिंग पर लखनऊ-बरौनी और मडुआडीह-लखनऊ एक्सप्रेस की टक्कर हुई थी. रात हो रही थी. हल्की ठंड भी पड़ने लगी थी. हादसे वाली जगह से रेलवे और बस स्टेशन की दूरी करीब 5-6 किमी की थी. हजारों यात्री थे. साधन उतने थे नहीं. लोगों का सामान और परिवार के साथ स्टेशन तक पहुंचना मुश्किल था. खास कर उनको जिनके साथ छोटे बच्चे और महिलाएं थीं.
तब सीएम योगी गोरखपुर के सांसद हुआ करते थे. चर्चा होने लगी कि छोटे महाराज (उस समय लोग पूरे पूर्वांचल में प्यार से उनको यही कहते थे) आ जाते तो सब ठीक हो जाता. उनको सूचना थी ही, समस्या की गंभीरता से वाकिफ होते ही वर्षों की परंपरा तोड़कर वह मौके पर पहुंचे. साथ में उनके खुद के संसाधन और समर्थक भी पहुंचे. प्रशासन भी सक्रिय हुआ. देर रात तक सब सुरक्षित स्टेशन पहुंच चुके थे. यकीनन इस बार भी उनकी मेहनत रंग लाएगी और प्रदेश कोरोना के इस संकट से पार पा लेगा.
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