Kanpur News: दशानन रावण का मंदिर करीब 158 वर्ष पुराना है और इसका कपाट केवल दशहरे के दिन ही खुलता है. इसे 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल द्वारा स्थापित किया गया था.
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Kanpur News: भारत में दशहरा रावण दहन का प्रतीक है, जहां रावण को बुराई के रूप में देखा जाता है और उसकी पराजय को विजय के रूप में मनाया जाता है. लेकिन कानपुर के शिवाला इलाके में एक ऐसा मंदिर है, जहां रावण की पूजा होती है. यह मंदिर करीब 158 साल पुराना है और दशहरे के दिन विशेष रूप से इसके कपाट खोले जाते हैं. इस दिन यहां भक्तगण दशानन रावण की पूजा और आरती करते हैं, जो इसे एक अनोखी धार्मिक परंपरा का केंद्र बनाता है.
कहा जाता है कि वर्ष 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने इस मंदिर का निर्माण कराया था. वे भगवान शिव के परम भक्त थे और रावण को शक्ति और विद्या का प्रतीक मानते थे. मंदिर में स्थापित रावण की प्रतिमा को शक्ति का प्रहरी माना जाता है और विजयदशमी के दिन विशेष श्रृंगार-पूजन किया जाता है. सुबह से ही मंदिर के कपाट खुल जाते हैं और शाम को आरती के साथ विशेष पूजा संपन्न होती है. सालभर मंदिर के कपाट बंद रहते हैं, और सिर्फ दशहरे के दिन ही इस मंदिर के दर्शन किए जा सकते हैं,
यह मंदिर भक्तों के लिए एक अद्वितीय स्थान है, जहां बुराई के प्रतीक रावण को भी शक्ति और विद्या का दूत माना जाता है. यहां की मान्यता है कि रावण की पूजा करने से व्यक्ति को शक्ति और ज्ञान की प्राप्ति होती है. दशहरे के दिन इस मंदिर में होने वाली पूजा और आरती भक्तों के बीच विशेष महत्व रखती है.