2018 में हिंदू पक्ष ने अदालत से मांग की थी कि पूरे ज्ञानवापी परिसर का पुरातत्व विभाग से सर्वेक्षण कराया जाए ताकि इस विवाद का हल निकल सके.
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वाराणसी: वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद मामले पर सबकी निगाहें टिकी हैं. इस मामले में आज वाराणसी के जिला न्यायालय में सुनवाई होने वाली है. 7 अक्टूबर को जज की अदालत ने सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की उस याचिका को स्वीकार कर लिया था, जिसमें सिविल कोर्ट में इस मुकदमे को चलाने की चुनौती दी गई है. हालांकि, कोर्ट ने देर से याचिका दायर करने पर वक्फ बोर्ड से 3 हजार रुपये हर्जाना भरने को कहा था. साथ ही, कोर्ट ने सुनवाई की तारीख आज यानी 13 अक्टूबर तय की थी. बता दें, कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को 90 दिन के अंदर याचिका दाखिल करने के लिए कहा था, लेकिन बोर्ड ने समय पर याचिका दायर न करने की वजह से जुर्माना लगाया गया.
इस सुनवाई में जिला जज की अदालत में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की याचिका के साथ बहस शुरू होगी कि ये मामला सिविल कोर्ट में चलेगा या वक्फ ट्रिब्यूनल लखनऊ में? हालांकि अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने पहले ही जिला जज की अदालत में सिविल कोर्ट को चुनौती देने वाली याचिका दाखिल कर रखी है.
क्या है काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद
हिंदू पक्ष ने वाराणसी की उस अदालत में 351 वर्ष पुराना एक महत्वपूर्ण कागज जमा कराया है जो काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद की सुनवाई कर रही है. यह ऐतिहासिक दस्तावेज 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब के एक दरबारी की तरफ से जारी किया गया था मूल रूप से इसे फारसी में लिखा गया था लेकिन इसका हिंदी में अनुवाद करके इसे अदालत में जमा कराया गया है. इसमें लिखा है कि औरंगजेब को ये खबर मिली है कि मुलतान के कुछ सूबों और बनारस में बेवकूफ ब्राह्मण अपनी रद्दी किताबें पाठशालाओं में पढ़ाते हैं और इन पाठशालाओं में हिंदु और मुसलमान विद्यार्थी और जिज्ञासु उनके बदमाशी भरे ज्ञान, विज्ञान को पढ़ने की दृष्टि से आते हैं. धर्म संचालक बादशाह ने ये सुनने के बाद सूबेदारों के नाम ये फरमान जारी किया है कि वो अपनी इच्छा से काफिरों के मंदिर और पाठशालाएं गिरा दें. उन्हें इस बात की भी सख्त ताकीद की गई है कि वो सभी तरह के मूर्ति पूजा संबंधित शास्त्रों का पठन-पाठन और मूर्ति पूजन भी बंद करा दें. इसके बाद औरंगजेब को ये जानकारी दी जाती है कि उनके आदेश के बाद 2 सितंबर 1669 को काशी विश्वनाथ मंदिर को गिरा दिया गया है.
यानी एक ऐतिहासिक दस्तावेज खुद इस बात की पुष्टि करता है कि औरंगजेब के आदेश पर ही काशी विश्वनाथ मंदिर को नुकसान पहुंचाया गया था. अब अदालत इस दस्तावेज को कितना महत्वपूर्ण मानती है ये अदालत पर निर्भर है. लेकिन कानूनी तौर पर जब कोई दस्तावेज अदालत में जमा किया जाता है तो उसके पीछे प्रमाणिक और गंभीर सोच होती है.
काशी विश्वनाथ मंदिर और उससे जुड़े तथ्य
1. काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, इसलिए ये हिंदुओं की आस्था के सबसे बड़े केंद्रों में से एक माना जाता है.
2. भारत में मुस्लिम आक्रमणकारियों के आने के साथ ही काशी विश्वनाथ मंदिर पर हमले शुरू हो गए थे. सबसे पहले 11वीं शताब्दी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने हमला किया था. इस हमले में मंदिर का शिखर टूट गया था. लेकिन इसके बाद भी पूजा पाठ होती रही.
3. 1585 में राजा टोडरमल ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था. वो अकबर के नौ रत्नों में से एक माने जाते हैं.
4. लेकिन 1669 में औरंगजेब के आदेश पर इस मंदिर को पूरी तरह तोड़ दिया गया और वहां पर एक मस्जिद बना दी गई.
5.1780 में मालवा की रानी अहिल्याबाई ने ज्ञानवापी परिसर के बगल में ही एक नया मंदिर बनवा दिया, जिसे आज हम काशी विश्वनाथ मंदिर के तौर पर जानते हैं.
6. लेकिन तब से ही यह विवाद आज तक जारी है और यह मामला कोर्ट में भी चल रहा है. 2018 में हिंदू पक्ष ने अदालत से मांग की है कि पूरे ज्ञानवापी परिसर का पुरातत्व विभाग से सर्वेक्षण कराया जाए ताकि ये विवाद का हल निकल सके.
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