Mahakumbh 2025: किन्नर महाकुंभ के पहले बनाएंगे नया अखाड़ा, महामंडलेश्वर हिमांगी सखी के ऐलान से संतों में मची खलबली
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Mahakumbh 2025: किन्नर महाकुंभ के पहले बनाएंगे नया अखाड़ा, महामंडलेश्वर हिमांगी सखी के ऐलान से संतों में मची खलबली

Prayagraj Mahakumbh 2025: महाकुंभ 2025 का आयोजन किन्नर समुदाय के लिए एक नई पहचान, एक नया मंच और एक नया अध्याय खोलने जा रहा है. हिमांगी सखी का यह प्रयास उनके अधिकारों को सशक्त करने और समाज के मुख्यधारा में उनके स्थान को पुनर्स्थापित करने का प्रयास करेगा. प्रयागराज महाकुंभ के लिए संस्थाओं के पंजीकरण शुरू हो गए हैं. ऑनलाइन और ऑफलाइन आवेदन 12 नवंबर तक स्वीकार किए जाएंगे.

Prayagraj Mahakumbh

Prayagraj Mahakumbh 2025: महाकुंभ 2025 में इस बार एक अनोखी पहल के तहत वैष्णव किन्नर अखाड़ा का गठन होने जा रहा है. किन्नरों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने और उनके धार्मिक अधिकारों को पुनर्स्थापित करने के उद्देश्य से वैष्णव किन्नर अखाड़ा का गठन करने की पहल की गई है. इस नए अखाड़े का नेतृत्व हिमांगी सखी, जो निर्वाणी अनी अखाड़ा की महामंडलेश्वर भी हैं, करने जा रही हैं. हिमांगी सखी ने यह निर्णय किन्नर समाज के उपेक्षित हिस्से को एकजुट करने और उन्हें महाकुंभ जैसे पवित्र आयोजन में उनके लिए विशेष स्थान देने के उद्देश्य से किया है.

पहली बार किन्नरों ने महाकुंभ में हिस्सा लिया
2015 में किन्नर अखाड़ा का गठन हुआ था, जिसमें लक्ष्मीनारायण अखाड़े के आचार्य के नेतृत्व में पहली बार किन्नरों ने महाकुंभ में हिस्सा लिया. इस अखाड़े का प्रमुख उद्देश्य किन्नरों के सम्मान और सामाजिक अधिकारों को पुनर्स्थापित करना था. लेकिन आपसी विवादों के चलते अखाड़े की एक संस्थापक सदस्य भवानी मां ने खुद को अलग कर लिया. इसी विवाद के कारण, हिमांगी सखी ने एक नए अखाड़े के गठन की ठानी है.

नई आशा की किरण
हिमांगी सखी ने स्पष्ट किया है कि नए वैष्णव किन्नर अखाड़े का उद्देश्य उन उपेक्षित किन्नरों को धार्मिक और सामाजिक पहचान दिलाना है, जो अभी तक समाज से कटे हुए हैं. उन्होंने कहा कि महाकुंभ 2025 में अर्धनारीश्वर धाम के नाम से एक शिविर भी लगाया जाएगा, जिसमें किन्नर समाज के लोगों को धार्मिक आस्था से जोड़ा जाएगा. यह शिविर किन्नर समुदाय को एकजुट करने और उन्हें उनके अधिकार दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा.

अखाड़ा परिषद से मान्यता की मांग
देश में पहले से मान्यता प्राप्त अखाड़ों की संख्या आठ थी, जो अब 13 हो चुकी है. अब वैष्णव किन्नर अखाड़ा के गठन के साथ इसे 14वां अखाड़ा मान्यता देने की मांग की जाएगी. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी ने इस संबंध में कहा है कि किसी भी नए अखाड़े को मान्यता देने के लिए एक विशेष प्रक्रिया होती है. यह मान्यता ही अखाड़े को समाज में एक स्थापित पहचान दिलाती है. हिमांगी सखी ने यह उम्मीद जताई है कि अखाड़ा परिषद वैष्णव किन्नर अखाड़े को मान्यता देने पर विचार करेगी ताकि किन्नर समुदाय का यह प्रयास समाज में अपनी विशेष पहचान बना सके.

महाकुंभ 2025 के लिए जमीन आवंटन प्रक्रिया शुरू
महाकुंभ 2025 के लिए प्रयागराज मेला प्राधिकरण ने संस्थाओं के पंजीकरण के लिए आवेदन प्रक्रिया शुरू कर दी है. इस बार आवेदन प्रक्रिया ऑनलाइन मोड में भी की जा रही है, जिससे संस्थाओं को आसानी से आवेदन की सुविधा मिल सके. नई और पुरानी सभी संस्थाएं अब मेला क्षेत्र में जमीन और सुविधाओं के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकती हैं. इसके लिए मेला प्राधिकरण की वेबसाइट पर 12 नवंबर तक आवेदन किया जा सकता है.

इस बार 10 हजार संस्थाएं करेंगी आवेदन
इस बार मेला प्रशासन को उम्मीद है कि लगभग 10 हजार संस्थाएं आवेदन करेंगी, जबकि पिछले महाकुंभ में केवल 5721 संस्थाओं ने आवेदन किया था. खास बात यह है कि इस बार की ऑनलाइन प्रक्रिया के कारण हर संस्था को यह स्पष्ट रूप से पता चल सकेगा कि उन्हें कितनी जमीन आवंटित की जाएगी. मेला प्रशासन की तरफ से जारी साइट  www.mklns.upsdc.gov.in  पर आवेदन किया जा सकता है, पहली बार मेले जमीन और सुविधाओं के ऑनलाइन आवेदन लिए जा रहे हैं, ऑफलाइन आवेदन भी मेला प्राधिकरण कार्यालय में लिए जाएंगे.

गुरुदत्त अखाड़ा का गठन भी चर्चा में
कुछ दिनों पहले ही श्री दशनाम श्री संत गुरुदत्त अखाड़े का गठन भी किया गया है. इस अखाड़े के संतों का पट्टाभिषेक 26 अक्टूबर को हुआ, जिसके बाद यह अखाड़ा भी चर्चा का विषय बना हुआ है. अब इसी कड़ी में वैष्णव किन्नर अखाड़े का गठन एक और नई पहल के रूप में सामने आया है.

किन्नर समाज की नई पहचान
हिमांगी सखी का यह प्रयास किन्नर समाज के धार्मिक और सामाजिक अधिकारों को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है. महाकुंभ जैसे प्रतिष्ठित आयोजन में किन्नरों का एक अलग अखाड़ा बनाकर उन्हें सम्मानजनक स्थान देने का यह प्रयास न केवल समाज को एक सकारात्मक संदेश देगा, बल्कि किन्नरों को भी उनकी पहचान और आत्मसम्मान की दिशा में आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करेगा.

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