Sultanpur lok sabha Seat 2024: इंडिया गठबंधन की ओर से इस सीट पर सपा ने राम भुआल निषाद को उतारा है. विपक्षी चक्रव्यूह में बसपा ने भी पिछड़ा कार्ड खेला. मायावती ने यहां से कुर्मी समुदाय के उदराज वर्मा को टिकट देकर पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के लगातार नवीं बार संसद पहुंचने की राह में कांटे बिछाने की कोशिश की है.
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Sultanpur lok sabha Seat 2024: उत्तर प्रदेश की हॉट सीटों में से एक सुल्तानपुर से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी चुनाव लड़ रही हैं. बीजेपी उम्मीदवार मेनका के सामने विपक्षी इंडिया ब्लॉक से समाजवादी पार्टी (सपा) ने पूर्व मंत्री रामभुआल निषाद और बहुजन समाज पार्टी ने उदराज वर्मा को उतारा है. सपा के निषाद और बसपा के कुर्मी कार्ड ने बीजेपी के लिए इस सीट पर चुनौती कड़ी कर दी है. मेनका गांधी बड़े कद की नेता हैं लेकिन सपा-बसपा के गणित ने सुल्तानपुर की लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया है.
बीजेपी-मेनका गांधी
मेनका 2014 में पीलीभीत सीट से सांसद चुनी गई थीं. वे 2004 में बीजेपी में शामिल हुई थीं. इससे पहले वे अमेठी से 1984 में राजीव गांधी के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ चुकी हैं. हालांकि, इस चुनाव में वह हार गईं थी. फिर इसके बाद मेनका 1988 में वी पी सिंह की पार्टी जनता दल पार्टी में शामिल हुईं. मेनका गांधी 1989 में पहली बार पीलीभीत से चुनाव जीतीं और केंद्र में मंत्री बनीं. बीजेपी ने फिर उन पर भरोसा जताते हुए टिकट दिया.
सपा-रामभुआल निषाद
सपा ने इस सीट से भीम निषाद को टिकट दिया था फिर पार्टी ने भीम का टिकट काटकर रामभुआल निषाद को दिया. रामभुआल की गिनती बड़े निषाद नेताओं में होती है. वह बसपा से दो बार विधायक और मायावती की सरकार में मंत्री रहे हैं.
बसपा-उदराज वर्मा
बहुजन समाज पार्टी ने सवर्ण उम्मीदवार के ट्रेंड को दरकिनार करते हुए कुर्मी बिरादरी से आने वाले जिला पंचायत सदस्य उदराज वर्मा को प्रत्याशी बनाया है. बीजेपी के सामने दोनों तरफ से चुनौती ही है. बसपा ने जिला पंचायत सदस्य उदराज वर्मा को इस बार लोकसभा चुनाव में उतारा है. उदराज वर्मा लोकसभा चुनाव में पहली बार किस्मत आजमा रहे हैं.बीएसपी ने उदराज को 2022 के यूपी चुनाव में सुल्तानपुर की लम्भुआ विधानसभा सीट से उम्मीदवार घोषित किय़ा था और बाद टिकट काट दिया था. बसपा के उम्मीदवार इस सीट से 1999 और 2004 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल कर चुके हैं वहीं सपा यह सीट कभी नहीं जीत पाई है.
वरुण की वजह से परेशान मेनका
इस बार मेनका गांधी के बेटे पीलीभीत से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. पीलीभीत से टिकट कटने के बाद वह चुनावी संग्राम से दूर नजर आ रहे हैं. इससे पहले पिछले चुनावों में अपनी मां कि लिए पूरी तरह से एक्टिव थे. वह पूरी तरह से उनके लिए चुनावी प्रचार में लगे थे. 2019 लोकसभा चुनाव में मेनका गांधी जीतीं और पार्टी ने वरुण गांधी के प्रचार और रणनीति को भी श्रेय दिया.2019 से इस बार की तस्वीर अलग है. मां अपने बेटे के टिकट कटने से परेशान हैं तो वहीं अपनी सीट के लिए भी उनको मेहनत करनी है.
मेनका के लिए दूसरी मुश्किल
बीजेपी के लिए सुल्तानपुर से दूसरी मुश्किल है यहां के वोटर ब्राह्मण और राजपूत वोटर. दोनों कोर वोटर भाजपा से नाराज चल रहे हैं. घनश्याम तिवारी हत्याकांड को लेकर काफी खींचतान चल रही है. विजय नारायण सिंह हत्याकांड में घनश्याम की पत्नी और भाइयों का नाम आने के बाद ब्राह्मण वोटर बीजेपी से नाराज हैं और इसका नुकसान बीजेपी की मेनका गांधी को हो सकता है.
क्या कहता है सुल्तानपुर का जातीय समीकरण
बात करें यहां के जातीय समीकरणों की तो यहां पर निषाद वोटर्स की संख्या करीब ढाई लाख है. यहां कुर्मी जाति के अच्छी संख्या में हैं. किसी भी चुनाव में कुर्मी और निषाद वोटर अहम भूमिका निभाते हैं. ये बीजेपी के लिए वोट करते रहे हैं. लेकिन इस बार सपा और बसपा ने इन्हीं प्रभावी जातियों से उम्मीदवार उतारे हैं जिससे बीजेपी का गणित फंस सकता है.
गठबंधन उम्मीदवार से कड़ी चुनौती
मेनका गांधी को सुल्तानपुर से गठबंधन उम्मीदवार से कड़ी चुनौती है. बीजेपी से ब्राह्मण मतदाता पहले ही नाराज थे, अब सजातीय कैंडीडेट आने से अगर निषाद और कुर्मी वोटर भी छिटक सकते हैं.अगर ऐसा हुआ तो मेनका गांधी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.
इस सीट पर सबसे ज्यादा 8 बार कांग्रेस
सुल्तानपुर सीट पर सबसे ज्यादा आठ बार कांग्रेस, पांच बार बीजेपी, दो बार बसपा और एक बार जनता दल के उम्मीदवार जीते हैं. सपा ने कभी इस सीट पर जीत दर्ज नहीं की. सपा ने पहली बार निषाद कार्ड खेला है. वहीं बसपा के कुर्मी-दलित समीकरण ने चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है.
कैसा रहा था 2019 का नतीजा
पिछले चुनाव में समाजावादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन कर चुनावी मैदान में थे. भाजपा की मेनका के खिलाफ गठबंधन से बीएसपी के टिकट पर चंद्रभद्र सिंह मैदान में उतरे थे.डॉक्टर संजय सिंह को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया था. मेनका गांधी को 4 लाख 58 हजार 281 वोट मिले थे. तब चंद्रभद्र सिंह 4, 44, 422 वोट के साथ दूसरे और कांग्रेस के डॉक्टर संजय 41 हजार 588 वोट के साथ तीसरे स्थान पर थे. मेनका गांधी करीब 14 हजार वोट के अंतर से चुनाव जीत सकी थीं.
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