UP Lok Sabha Chunav 2024: यूपी का विधानसभा चुनाव हो या फिर लोकसभा चुनाव दोनों ही मायनों में उत्तर प्रदेश भारत का एक अहम राज्य है. विधानसभा में यहां 403 सीटें हैं जबकि लोकसभा में 80 सीटें हैं. अगर  राजनीतिक दृष्टिकोण से नजर डाली जाए तो यूपी में कई सीटें ऐसी हैं जिन्हें सियासत का धुरी भी कहा जाता है. ऐसी ही एक सीट है रामपुर. वैसे तो इस शहर को रामपुरी चाकू के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन सियासत के इतिहास में इसे आजम खान के शहर के तौर पर देखा जाता है. कभी आजम खान की यहां पर तूती बोलती थी. फिलहाल, रामपुर सीट पर आज भाजपा का कब्जा है. बीजेपी ने उपचुनाव में इस सीट पर कब्जा किया था. इस सीट पर 50 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम हैं. यहां से 12 बार मुस्लिम चेहरे नुमाइंदगी कर चुके हैं.


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रामपुर की सीट जाएगी किसके पास?
2019 के चुनाव में सपा और बीएसपी का गठबंधन था. इस बार सपा-कांग्रेस का गठबंधन है. लेकिन, अभी यह तय नहीं हो पा रहा है कि सीट सपा के खाते में जाएगी या कांग्रेस के. दोनों ही अपने-अपने स्तर से सीट पर दावा जता रहे हैं. यहां मुख्य मुकाबला बीजेपी और गठबंधन के बीच होना है. बेशक, वर्तमान में रामपुर सीट भाजपा के है. लेकिन, आजम खां का गढ़ और कांग्रेस के गठबंधन के चलते यहां कमल खिलना आसान नहीं माना जा रहा है.


मुस्लिम और हिंदू प्रत्याशी के फेर में सपा
BJP के लोकसभा उम्मीदवार की घोषणा के बाद लोगों की निगाहें सपा और बसपा पर टिकी थी. बीएसपी ने भी अपने पत्ते खोल दिए. सपा की बात करें तो पार्टी  रामपुर लोकसभा सीट से मुस्लिम और हिंदू प्रत्याशी के चक्कर में उलझी हुई सी नजर आ रही है. बसपा ने लोकसभा चुनाव के लिए 7 उम्मीदवारों की घोषणा की है. इनमें 5 मुस्लिम समुदाय से और 2 अन्य पिछड़ा वर्ग से हैं.


2022 के उपचुनाव में आजम से छिनी सीट
2019 में इस सीट से सपा के वरिष्ठ नेता आजम खां चुनाव जीते थे. लेकिन, सजा होने पर उनकी सदस्यता चली गई थी. 2022 के उपचुनाव में BJP ने उनसे यह सीट छीन ली थी. अब यहां से घनश्याम लोधी सांसद हैं. BJP ने उन्हें दोबारा उम्मीदवार बनाया है. सपा-कांग्रेस गठबंधन ने यहां से अभी तक कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा किया है.


रामपुर की राजनीति में करीब 42 साल दबदबा
आजम खान का रामपुर की राजनीति में करीब 42 साल दबदबा रहा है. 1980 में पहली बार वह शहर विधायक चुने गए.  तब से 10 बार विधायक बने.  1996 में वह चुनाव हार गए तो उन्हें राज्यसभा सदस्य बना दिया. प्रदेश में जब भी सपा की सरकार बनी, तब वह कई-कई विभागों के मंत्री रहे,.  रामपुर से लोकसभा सदस्य भी चुने गए. उनकी पत्नी डा. तजीन फात्मा भी राज्यसभा सदस्य रहीं. बेटे अब्दुल्ला भी दो बार स्वार सीट से विधायक चुने गए. अब्दुल्ला को उन्होंने 2017 में विधायक बनवा दिया लेकिन उम्र के विवाद में हाईकोर्ट ने उनकी विधायकी निरस्त कर दी. अब्दुल्ला 2022 में फिर से स्वार सीट से विधायक बने, लेकिन छजलैट प्रकरण के मुकदमे में मुरादाबाद की कोर्ट से दो साल की सजा सुनाए जाने के कारण उनकी विधायकी चली गई.


आजम का अपना रसूख
रामपुर के निवासियों का कहना है कि आजम का अपना रसूख था. उनके जेल में रहने से इसका प्रभाव जरूर पड़ेगा. उनके परिवार में कोई भी उतना राजनीति में दम खम नहीं रखता है.अगर वह बाहर आ जाते हैं तो चुनाव का रुख जरूर बदलेगा. स्थानीय लोगों और राजनीति के जानकारों का कहना है कि रामपुर की लड़ाई में शहर को काफी नुकसान हुआ है. भले ही ये शहर सियासत में चर्चा में रहता है पर इसका विकास उतना नहीं हुआ, जितना होना चाहिए था. रोजगार की कमी है.


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रामपुर का राजनीतिक इतिहास
 रामपुर लोकसभा सीट पर 1952 में पहली बार मौलाना अबुल कलाम आजाद सांसद बने थे. वह देश के पहले शिक्षा मंत्री भी बने थे. अब तक रामपुर लोकसभा सीट पर 18 चुनाव हुए हैं, जिसमें कांग्रेस सबसे ज्यादा 10 बार जीती थी.रामपुर लोकसभा सीट पर चार बार भाजपा का कब्जा रहा. सपा ने भी तीन बार जीत दर्ज की है. एक बार जनता पार्टी के खाते में सीट गई है.


चार बार BJP, तीन बार सपा और एक बार जनता पार्टी जीती
मुस्लिम बाहुल्य रामपुर लोकसभा सीट पर आजादी से लेकर अब तक के रिकॉर्ड को देखें तो यहां सामान्य और उप चुनाव दोनों मिलाकर 18 बार इलेक्शन हुआ है, जिसमें 10 बार कांग्रेस जीती है. जबकि, चार बार BJP, तीन बार सपा और एक बार जनता पार्टी ने परचम फहराया है. चुनावी आंकड़ों पर गौर करें तो रामपुर सीट मुस्लिम बाहुल्य है. 


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