आज कल के मां बाप अपने बच्चों को इस्लाम की सही तालीम नहीं दे रहे हैं. इसलिए बोर्ड ने मुस्लिम धर्म गुरुओं यानी आलिमों और मुस्लिम बच्चों के मां- बाप से अपील की है की हर जगह अपने बच्चों को यही समझाएं कि सिर्फ अपने समुदाय में ही शादी करें.
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संकल्प दुबे/लखनऊ: आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (All India Muslim Personal Law Board) ने मुस्लिम युवाओं और युवतियों के गैर मुस्लिमों से निकाह करने को शरीयत में अवैध बताया है. AIMPLB के मुताबिक एक मुस्लिम लड़की और लड़के केवल इसी समुदाय में निकाह कर सकते हैं.
प्रेस रिलीज जारी कर की युवक-युवतियों से अपील
मुसलमान धर्मगुरुओं ने प्रेस रिलीज जारी कर युवक-युवतियों के लिए अपील जारी की है. बोर्ड ने कहा कि इस्लाम ने शादी के मामले में यह ज़रूरी क़रार दिया है कि एक मुस्लिम लड़की, केवल एक मुस्लिम लड़के से ही शादी कर सकती है. इसी तरह एक मुस्लिम लड़का एक मुशरिक (बहुदेववादी) लड़की से शादी नहीं कर सकता. यदि उसने ज़ाहिरी तौर पर शादी की रस्म अंजाम दी भी है तो शरीयत के अनुसार वैध नहीं होगी.
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बोर्ड का कहना है कि कई घटनाएं ऐसी भी सामने आईं कि मुस्लिम लड़कियां ग़ैर-मुस्लिम लड़कों के साथ चली गईं और बाद में बड़ी कठिनाइयों से गुज़रना पड़ा. यहां तक कि उन्हें अपने जीवन से भी हाथ धोना पड़ा, इस पृष्ठभूमि के सन्दर्भ में अनुरोध किया जाता है:
पर्सनल लॉ बोर्ड ने जारी की गाइडलाइंस
1- उलेमा-ए-किराम जलसों में बार बार इस विषय पर ख़िताब (सम्बोधन) करें और लोगों को इसके दुनियावी व आख़िरत के नुक़सान से जागरूक करें.
2- अधिक से अधिक महिलाओं के इज्तेमा हों और उनमें इस पहलू पर अन्य सुधारात्मक विषयों के साथ चर्चा करें.
3- मस्जिदों के इमाम जुमा के ख़िताब, क़ुरआन और हदीस के दर्स में इस विषय पर चर्चा करें और लोगों को बताएं कि उन्हें अपनी बेटियों को कैसे प्रशिक्षित करना चाहिए ताकि ऐसी घटनाएं न हों?
4- माता-पिता अपने बच्चों की दीनी (धार्मिक) शिक्षा की व्यवस्था करें, लड़के और लड़कियों के मोबाइल फ़ोन इत्यादि पर कड़ी नज़र रखें, जितना हो सके लड़कियों के स्कूल में लड़कियों को पढ़ाने का प्रयास करें, सुनिश्चित करें कि उनका समय स्कूल के बाहर और कहीं भी व्यतीत न हो और उन्हें समझाएं कि एक मुसलमान के लिए एक मुसलमान ही जीवन साथी हो सकता है.
5- आमतौर पर रजिस्ट्री कार्यालय में शादी करने वाले लड़के या लड़कियों के नामों की सूची पहले ही जारी कर दी जाती है। धार्मिक संगठन, संस्थाएं, मदरसे के शिक्षक आबादी के गणमान्य लोगों के साथ उनके घरों में जाएं और उन्हें समझाएं और बताएं कि इस तथाकथित शादी में उनका पूरा जीवन ह़राम में व्यतीत होगा और अनुभव से पता चलता है कि सामयिक जुनून के तहत की जाने वाली यह शादी दुनिया में भी विफल ही रहेगी.
6- लड़कों और विशेषकर लड़कियों के अभिभावकों को ध्यान रखना चाहिए कि शादी में देरी न हो, समय पर शादी करें; क्योंकि शादी में देरी भी ऐसी घटनाओं का एक बड़ा कारण है.
7- निकाह़ सादगी से करें, इसमें बरकत भी है, नस्ल की सुरक्षा भी है और अपनी क़ीमती दौलत को बर्बाद होने से बचाना भी है.
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माता-पिता की ओर से प्रशिक्षण की कमी के कारण अन्तर-धर्म शादियां
बोर्ड के मुताबिक इसकी बड़ी वजह ये है की आज कल के मां बाप अपने बच्चों को इस्लाम की सही तालीम नहीं दे रहे हैं. इसलिए बोर्ड ने मुस्लिम धर्म गुरुओं यानी आलिमों और मुस्लिम बच्चों के मां- बाप से अपील की है की हर जगह अपने बच्चों को यही समझाएं कि सिर्फ अपने समुदाय में ही शादी करें.
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