इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने इस मामले में टेंडर प्रक्रिया से जुड़े सभी दस्तावेज तलब किए हैं. कोर्ट ने इस मामले में सरकारी अफसरों की कार्यप्रणाली पर तल्ख टिप्पणी की है.
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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में सरकार की तरफ से स्कूली बच्चों को दिए जाने वाले जूते मोजों की क्वालिटी पर हाईकोर्ट ने सवाल खड़े किए हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने इस मामले में टेंडर प्रक्रिया से जुड़े सभी दस्तावेज तलब किए हैं. कोर्ट ने इस मामले में सरकारी अफसरों की कार्यप्रणाली पर तल्ख टिप्पणी की है. कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया है कि सचिव स्तर का अधिकारी 11 अप्रैल को कोर्ट में सभी दस्तावेजों के साथ हाजिर हो.
अधिकारियों ने योजना को किया बर्बाद
इस मामले में जस्टिस विक्रम नाथ और अब्दुल मोईन ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि 266 करोड़ रुपए खर्च करके 1 करोड़ 54 लाख स्कूली विद्यार्थियों को जूते-मोजे बांटने की अच्छी योजना को सरकारी अफसरों ने अपने कारनामे से बर्बाद कर दिया. कोर्ट ने कहा कि वो ये जानना चाहती है कि टेंडर में क्या क्वालिटी निर्धारित की गई और क्या प्रक्रिया अपनाई गई.
'करदाताओं का पैसा अफसरों ने किया बर्बाद'
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस अब्दुल मोईन ने टिप्पणी करते हुए कहा, 'खबर पढ़कर हम हतप्रभ हैं. ऐसा लगता है कि सरकार कुछ अच्छा करना चाहती थी, लेकिन जूते-मोजे की घटिया क्वालिटी ने उसका उद्देश्य ही विफल कर दिया. इसके लिए 266 करोड़ रुपये खर्च कर दिए. अफसरों ने करदाताओं का पैसा बर्बाद कर दिया. इसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए. प्रथम दृष्टया यह मामला कठोर कार्रवाई का है.'
प्रकाशित खबर का लिया संज्ञान
हाईकोर्ट ने इस संबंध में एक अखबार में प्रकाशित खबर का संज्ञान लेते हुए उसे जनहित याचिका के तौर पर दर्ज किया था. उस रिपोर्ट में लखनऊ के जियामऊ क्षेत्र के प्राथमिक स्कूल में छात्रों को बांटे जाने वाले जूते-मोजे के विषय में खबर प्रकाशित हुई थी. जानकारी के मुताबिक, जूतों के सोल उधड़े हुए थे, जिसे बच्चों ने रबर बैंड या लेस से बांधा हुआ था.