Sidarth Vihar Land Scam: आवास विकास के अफसरों एवं इंजीनियरों के द्वारा गाजियाबाद के एक बिल्डर को भू उपयोग शुल्क जमा कराए बिना ही साल 2014 में सिद्धार्थ विहार योजना के सेक्टर आठ में 12.47 एकड़ जमीन देने का घोटाला उजागर हुआ है.
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विशाल सिंह/लखनऊ: उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद की सिद्धार्थ विहार योजना पर शुरू से ही सवाल उठाए जाते रहे हैं. खासतौर से सेक्टर आठ में जमीन आवंटन का मामला लगातार सुर्खियों में है. इस मामले की जांच मेरठ के कमिश्नर से कराई गई थी. जांच में पाया गया था कि अधिकारियों और बिल्डर की मिलीभगत से करोड़ों का नुकसान हुआ है. मामला एसआईटी को भी सौंपा गया और इसमें भी करीब 350 करोड़ का घोटाला सामने आया है. आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला.
कमिश्नर जांच के बाद एसआईटी
लखनऊ आवास विकास के अफसरों एवं इंजीनियरों के द्वारा गाजियाबाद के बिल्डर गौर संस (Gaur Sons) इंडिया कंपनी को भू उपयोग शुल्क जमा कराए बिना ही वर्ष 2014 में सिद्धार्थ विहार योजना (Siddharth Vihar Yojana Awas Vikas Parishad) के सेक्टर आठ में 12.47 एकड़ जमीन देने का घोटाला उजागर हुआ है. इस जमीन की कीमत अनुमानित 350 करोड़ रुपये आंकी जा रही है. इस जमीनी घोटाले की जांच SIT ने की थी. एसआईटी के द्वारा आवास विकास को जांच रिपोर्ट सौंपे जाते ही आवास आयुक्त रणवीर प्रसाद ने शासन के अपर मुख्य सचिव (आवास) नितिन रमेश गोकर्ण को प्रकरण की विजिलेंस जांच कराए जाने के लिए पत्र लिखा है.
इन्हें पाया गया दोषी
एसआईटी के द्वारा की गई जांच में तत्कालीन उप आवास आयुक्त एसवी सिंह, सहायक अभियंता आरएल गुप्ता, अनुभाग अधिकारी साधु शरण तिवारी, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी बैजनाथ प्रसाद और सहायक श्रेणी द्वितीय आरसी कश्यप को प्रथम दृष्ट्या दोषी पाया गया है. जांच पूरी होने से पहले यह सभी दोषी रिटायर हो चुके हैं. बताया जाता है कि आवास विकास परिषद की तरफ से मोहन मिकिंस और नेशनल सीरियल प्रोडक्ट्स लिमिटेड को 12.47 एकड़ जमीन दी गई थी. इसका मकसद जल शुद्धिकरण का था. फर्मों ने नियमों की अनदेखी की और एक्सचेंज डीड में बदलाव कर दिया. बाद में यह जमीन गौर संस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को बेच दी थी.
मुआवजा देकर ली थी जमीन
आवास विकास ने एसटीपी बनाने के लिए किसानों को मुआवजा देकर साल 1989 में इस जमीन का कब्जा लिया था. वर्ष 2004 में इस जमीन को लेकर विवाद शुरू हुआ तो जून 2014 में बिल्डर की दूसरी जमीन के एवज में एसटीपी के प्रस्तावित जमीन उसे दे दी गई. बिल्डर को इस पर आवासीय प्रोजेक्ट लाने से पहले उसका भू उपयोग बदला जाना था, इसके लिए शुल्क लिया जाना था. मगर अफसरों और इंजीनियरों ने भू उपयोग शुल्क जमा बिना कराए ही जमीन दे दी. इससे आवास विकास को को 350 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.