Waheeda Rehman: वहीदा रहमान को दादा साहेब फाल्के अवार्ड देने का ऐलान, सिनेमा जगत का सर्वोच्च सम्मान
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Waheeda Rehman: वहीदा रहमान को दादा साहेब फाल्के अवार्ड देने का ऐलान, सिनेमा जगत का सर्वोच्च सम्मान

Waheeda Rehman: वहीदा रहमान को दादा साहेब फाल्के अवार्ड देने का ऐलान, सिनेमा जगत का सर्वोच्च सम्मान

Waheeda Rehman Dada Saheb Phalke Award

Dadasaheb Phalke Lifetime Achievement Award: सिनेमा जगत की दिग्गज फिल्म अभिनेत्री वहीदा रहमान को दादा साहेब फाल्के अवार्ड देने की घोषणा की गई है. सूचना मंत्री अनुराग ठाकुर ने मंगलवार को ये घोषणा की. वहीदा रहमान डॉक्टर बनना चाहती थीं, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति देख उन्होंने फिल्म जगत में कदम रखा. वहीदा रहमान चार सगी बहनें थीं तो उन्होंने परिवार में पित की मदद के लिए ये रास्ता चुना. वहीदा रहमान ने 90 के करीब फिल्मो में काम किया है. उन्हें पद्म श्री और पद्म भूषण सम्मान से भी नवाजा जा चुका है.देवानंद के साथ उन्होंने कई सुपरहिट फिल्में दीं. 

वहीदा रहमान ने हिन्दी फिल्मों के साथ तमिल, तेलगू और बंगाली फिल्मों में अभिनय किया है. 1950 से करीब तीन दशकों तक उन्होंने फिल्मों के जरिये शोहरत हासिल की. वहीदा रहमान को आशा पारेख की तरह ही कई बड़े अवॉर्ड हासिल हुए. वहीदा रहमान को फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड, सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए 2 बार फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला था. 

वहीदा की हिन्दी फिल्म में शुरुआत CID (1956) हुई थी. इसके बाद फिल्म अभिनेत्री के तौर पर वहीदा रहमान को प्यासा (1957), 12 ओक्लॉक (1958)में काम किया. लेकिन कागज के फूल (1959) और उसके बाद साहिब बीवी और गुलाम और चौदहवीं का चांद (1961) जैसी सुपरहिट फिल्मों से उनका करियर लगातार बुलंदियों पर पहुंचा.

वहीदा रहमान की जोड़ी फिल्म इंडस्ट्री में लंबे वक्त छाई रही. सोलहवां साल (1958) और उसके बात एक रात की (1962), बीस साल बाद (1962), कोहरा (1964) में भी उनके अभिनय को सराहा गया. देवानंद के साथ गाइड (1965), और फिर मुझे जीने दो (1963) के बाद राज कपूर की तीसरी कसम (1966), नील कमल (1968) और खामोशी (1969) से भी वो खूब लोकप्रिय हुईं.

गाइड (1965) में बेहतरीन अभिनय के लिए वहीदा रहमान ने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार पाया. नील कमल (1968) के लिए भी उन्हें फिल्म फेयर मिला. रेशमा और शेरा (1971) के लिए नेशनल फिल्म अवार्ड उनकी झोली में आया. उनकी आखिरी फिल्म लम्हे के तौर पर 1991 में आई.

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