करीब 15 साल तक सरकारी रिकॉर्ड में अपने जिंदा होने का सबूत देने के लिए कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने वाले भोला सिंह की आखिरकार जीत हुई है. मामला सीएम योगी आदित्यनाथ के संज्ञान में आने के बाद जांच में तेजी आई और 15 साल से अपने जिंदा होने का सबूत रहा भोला सरकारी कागजों में जिंदा हो गया.
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मिर्जापुर: सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं. यह कहावत सच साबित हुई है. करीब 15 साल तक सरकारी रिकॉर्ड में अपने जिंदा होने का सबूत देने के लिए कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने वाले भोला सिंह की आखिरकार जीत हुई है. मामला सीएम योगी आदित्यनाथ के संज्ञान में आने के बाद जांच में तेजी आई और 15 साल से अपने जिंदा होने का सबूत रहा भोला सरकारी कागजों में जिंदा हो गया.
क्या है पूरा मामला
दरअसल, मिर्जापुर जिले के अमोई गांव के रहने वाले भोला सिंह की गांव में पुस्तैनी जमीन है. जिसको हड़पने के लिए उसके सगे भाई राजनारायण की नीयत बदल गई. भोला सिंह के मुताबिक उसके भाई ने जमीन के लालच में लेखपाल के साथ साठगांठ कर सरकारी कागजों में मृत दर्ज करा दिया. वर्ष 1999 तक भोला का नाम खतौनी में दर्ज था. जिसे मृत दिखाकर अपना नाम दर्ज करा लिया गया था. उसने अपने भाई राजनारायण पर, लेखपाल और कानूनगो की मदद से जमीन के कागज (खतौनी) पर उन्हें मृतक दर्ज कराए जाने का आरोप लगाया था. 2016 में इन तीनों लोगों को आरोपी बनाकर मुकदमा भी दर्ज कराया गया था.
15 साल से खुद को जिंदा साबित करने के लिए काट रहा था चक्कर
जब भोला को अपने साथ हुई धोखाधड़ी की जानकारी मिली तो उसने खुद को जिंदा साबित करने के लिए कानूनी कार्रवाई का सहारा लिया. मामला सीएम योगी के संज्ञान में आने और जांच में तेजी की वजह से 15 साल बाद आखिर में भोला की जीत हुई और उनका नाम तहसीलदार के आदेश पर सरकारी दस्तावेजों पर दर्ज किया गया. तहसीलदार सुनील कुमार ने नाम दर्ज कराने के साथ ही उसे खतौनी दिया.
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