Sambhal Pataleshwar Mahadev Mandir : संभल जिले के बहजोई क्षेत्र के गांव में 120 साल से अधिक प्राचीन पातालेश्वर महादेव मंदिर शिव भक्तों की अटूट आस्था का केंद्र बना हुआ है. इस मंदिर के संदर्भ में लोगों कि मान्यता है कि मंदिर में झाड़ू अर्पित करने से सभी प्रकार के चर्म रोगों से मुक्ति मिल जाती है. श्रावण के महीने में बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस मंदिर में पूजा अर्चना के लिए पहुंचते है.
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Sambhal: संभल जिले के बहजोई क्षेत्र के गांव में 120 साल से अधिक प्राचीन पातालेश्वर महादेव मंदिर शिव भक्तों की अटूट आस्था का केंद्र बना हुआ है. मंदिर में स्थित भगवान भोले नाथ के पवित्र शिवलिंग के संदर्भ में कहा जाता है कि शिवलिंग का आधार पाताल में है, इसलिए मंदिर को पातालेश्वर महादेव का मंदिर कहा जाता है.
झाडू अर्पित कर ठीक होते है चर्म रोग
बताते है कि शिवलिंग की गहराई परखने के लिए शिवलिंग को उखाड़ने के लिए कई बार प्रयास किया गया था लेकिन कोई भी पवित्र शिवलिंग को हिला नही सका. पातालेश्वर महादेव के इस मंदिर के संदर्भ में लोगों कि मान्यता है कि मंदिर में झाड़ू अर्पित करने से सभी प्रकार के चर्म रोगों से मुक्ति मिल जाती है. श्रावण के महीने में बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस मंदिर में पूजा अर्चना के लिए पहुंचते है.
अलौकिक चुंबकीय शक्ति का
उत्तर प्रदेश के संभल जिले में बहजोई क्षेत्र के गांव सादात बाड़ी (धीमर वारी ) में स्थित 120 साल पुराना पातालेश्वर महादेव के मंदिर के संदर्भ में मंदिर के महंत के अनुसार मंदिर की जगह पर पहले जंगल हुआ करता था. इलाके के ग्रामीण पशुओं के लिए जंगल में घास काटने के दौरान शिवलिंग को महज पत्थर मानकर शिवलिंग पर अपनी खुरपी और दरांती पर धार लगाते थे. धार लगाने के दौरान ग्रामीणों को एक अलौकिक चुंबकीय शक्ति का आभास होता था. जिसका जिक्र ग्रामीणों ने गांव के लोगों से किया तो गांव के लोगों ने शिवलिंग को भगवान पातालेश्वर महादेव की शिवलिंग मानकर उसके आसपास की साफ सफाई कर पूजा अर्चना के साथ भजन कीर्तन करना शुरू कर दिया था.
1902 में हुआ मंदिर का निर्माण
इलाके के एक जमींदार ने शिवलिंग को महज पत्थर मानकर शिवलिंग को उखड़वाने का काफी प्रयास किए था लेकिन शिवलिंग उखाड़ने के दौरान एक व्यक्ति ने शिवलिंग पर कुल्हाड़ी मार दी. कुल्हाड़ी के वार से शिवलिंग से रक्त बहने लगा और कुल्हाड़ी मारने वाला व्यक्ति पूरी तरह दृष्टिहीन हो गया और कुछ दिनों में जमींदार को भी कुष्ठ रोग हो गया. इस चमत्कार के बाद ग्रामीणों ने शिवलिंग के स्थान पर मठिया की स्थापना कर दी जिसके बाद साल 1902 में एक जमींदार की और से मंदिर का निर्माण कराया गया. सावन के महीने में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पवित्र शिवलिंग की पूजा अर्चना के लिए पहुंचते है ,पूरे सावन माह मंदिर परिसर में विशाल मेला लगता है और पूरे साल हर सोमवार को शिवभक्त पवित्र शिवलिंग का विशेष शृंगार करते है.
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