UP Nikay Chunav 2023: पिछड़ा वर्ग आयोग को निकायों चुनाव को लेकर अपनाई जाने वाली रिजर्वेशन प्रक्रिया में गड़बड़ी की कई शिकायतें मिली हैं. खास तौर पर मेयर और अध्यक्ष की सीटों के आरक्षण प्रक्रिया पर सवाल उठाए गए हैं. ऐसे में अब कई अधिकारियों पर कार्रवाई तय है.
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लखनऊ : निकाय चुनाव को लेकर सियासी और प्रशासनिक दोनों ही तरह की हलचल देखने को मिल रही हैं. पिछड़ा वर्ग आयोग ने नगर निकाय चुनाव में लगातार कई चुनाव से एक ही वर्ग के लिए सीटों के रिजर्वेशन को लेकर सबसे ज्यादा सवाल मेयर और अध्यक्षों की सीटों को लेकर उठाया है. आयोग ने लखनऊ व प्रयागराज नगर निगमों में मेयर के अलावा 70 से ज्यादा नगर पालिका परिषदों व चार दर्जन से अधिक नगर पंचायतों में अध्यक्ष की सीटों के रिजर्वेशन में गड़बड़ी की आशंका जताई है. रिपोर्ट में आयोग के अध्ययन का हवाला देते हुए इन निकायों की सीटों के रिजर्वेशन में नियमों की अनदेखी की भी बात कही गई है.
उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में पिछड़ों के सीटों का आरक्षण चक्रानुक्रम व्यवस्था के मुताबिक करने का प्रावधान है. इस प्रावधान मुताबिक एक सीट पर एक वर्ग को ही बार-बार रिजर्वेशन का फायदा नहीं दिया सकता है, जबकि इस बार के चुनाव के लिए शासन द्वारा जारी तमाम ऐसी सीटों को उसी वर्ग के लिए आरक्षित कर दिया गया है, जिस वर्ग के लिए यह सीटें पिछले कई चुनाव में आरक्षित रही हैं.
सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर गठित पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपनी रिपोर्ट में ऐसी कई सीटों को लेकर सवाल उठाए हैं. आयोग ने इन कमियों की ओर यह भी सवाल उठाया है कि कुछ चुनावों को छोड़ दें तो बार-बार कैसे सीटें अनारक्षित होती रही. आयोग की इस टिप्पणी के बाद अब शासन स्तर पर इन सवालों का जवाब तलाशा जा रहा है.
राज्य का गणित
राज्य में महापौर की 17 और अध्यक्ष की 745 सीटें हैं. इनमें नगर पालिका परिषद की 200 और नगर पंचायत अध्यक्ष की 545 सीटें शामिल हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या महापौर व अध्यक्ष की सीटों में चक्रानुक्रम व्यवस्था का पूरी तरह से पालन नहीं किया जा रहा है.
क्या है चक्रानुक्रम व्यवस्था
चक्रानुक्रम व्यवस्था के मुताबिक अनुसूचित जनजाति महिला, अनुसूचित जनजाति, एससी महिला, एससी, ओबीसी महिला, ओबीसी, माहिला व अनारक्षित वर्ग के लिए सीटें आरक्षित होंगी. वरियताक्रम खत्म होने के बाद पुन: वही चक्र फिर से चलेगा, लेकिन सर्वे में इसका पूरी तरह से पालन होता नहीं पाया गया है.
आयोग ने दिया नियम का उदाहरण
पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट में कुछ निकायों का उदाहरण भी दिया गया है. इसके मुताबिक लखनऊ 2012 में अनारक्षित था, 2107 में महिला किया गया और साल 2022 में पुन: इसे अनारक्षित प्रस्तावित कर दिया गया. इसी तरह आगरा 2012 में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित था. 2017 में इसे अनारक्षित किया गया और 2022 में एससी महिला के लिए प्रस्तावित कर दिया गया. ऐसे ही वाराणसी 2012 में अनारक्षित था, 2017 में इसे ओबीसी महिला किया गया और वर्ष 2022 में पुन: अनारक्षित प्रस्तावित कर दिया गया. सहारनपुर सीट 2012 में महिला थी, 2017 में इसे पिछड़ा वर्ग के लिए किया गया और वर्ष 2022 के चुनाव में पुन: महिला के लिए प्रस्तावित कर दिया गया.
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100 से अधिक अध्यक्ष की सीटों पर भी सवाल
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में मेयर के अलावा अध्यक्ष की सीटों के रिजर्वेशन पर भी सवाल उठाए हैं. सूत्रों का कहना है कि आयोग ने नगर पालिका परिषद में अध्यक्ष की 70 से अधिक सीटों के आरक्षण पर सवाल उठाते हुए इसके परीक्षण का सुझाव दिया है. इसके अलावा नगर पंचायत में अध्यक्ष की चार दर्जन से अधिक सीटों के आरक्षण में नियमों की अनदेखी की बात कही गई है.
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