शारदीय नवरात्रि की शुरुआत के साथ ही प्रकृति में 9 दिनों में बड़े बदलाव होते हैं. नवरात्रि का समय ऋतु परिवर्तन के लिए भी जाना जाता है.
सर्दी और गर्मी की इन दोनों महत्वपूर्ण ऋतुओं के मिलन या संधिकाल को नवरात्रि का नाम दिया गया है.
नवरात्रि के समय में हमारी आंतरिक चेतना और शरीर में भी परिवर्तन होता है. ऋतु प्रकृति का हमारे जीवन, सोच और धर्म में बहुत अहम स्थान रहा है.
यदि आप नौ दिनों तक अन्न का त्याग कर भक्ति करते हैं तो आपका शरीर और मन साल भर स्वस्थ और निश्चिंत रहता है.
शारदीय नवरात्रि में शक्ति मां के 9 रूपों की पूजा की जाती है. इन नौ रूपों से ही माता का संपूर्ण जीवन समाया हुआ है.
माता के जिन 9 रूपों की पूजा की जाती है उनमें 1. शैलपुत्री, 2. ब्रह्मचारिणी, 3. चंद्रघंटा, 4. कुष्मांडा, 5. स्कंदमाता, 6. कात्यायनी, 7. कालरात्रि, 8. महागौरी और 9. सिद्धिदात्री हैं.
मां दुर्गा ने धरती पर महिषासुर के आतंक को समाप्त किया था. महिषासुर का वरदान मिला था कि कोई भी देवता या दानव उसपर विजय हासिल नहीं कर सकता.
ऐसे में देवताओं ने माता को खुश कर उनसे रक्षा का अनुरोध किया. इसके बाद मातारानी ने अपने अंश से नौ रूप प्रकट किए. इन्हें देवताओं ने अपने शस्त्र देकर शक्ति से युक्त किया.
एक वजह यह भी है कि अंकों में नौ अंक पूर्ण होता है. नौ के बाद कोई अंक नहीं होता है. सात ग्रहों में नौ ग्रहों को महत्वपूर्ण माना जाता है.
किसी भी मनुष्य के शरीर में सात चक्र होते हैं जो जागृत होने पर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करते हैं. नवरात्रि के नौ दिनों में से 7 दिन तो चक्रों को जागृत करने की साधना की जाती है.
वहीं, 8वें दिन शक्ति को पूजा जाता है. 9वें दिन शक्ति की सिद्धि का होता है. शक्ति की सिद्धि यानि हमारे भीतर शक्ति जागृत होती है.
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