कौन थी 15 साल की वीरांगना तीलू रौतेली, 7 साल 13 किले जीतकर `उत्तराखंड की लक्ष्मीबाई` कहलाई

उत्‍तराखंड वीरों ही नहीं वीरांगनाओं की धरती रही है. यहां विश्‍व की एकलौती वीरांगना हुईं, जिन्‍होंने अकेले सात युद्ध लड़े. इनकी अदम्‍य शौर्य की गाथा के चलते इन्‍हें `उत्‍तराखंड की रानी लक्ष्‍मीबाई` कहा गया.

अमितेश पांडेय Fri, 09 Aug 2024-1:11 pm,
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कौन थीं तीलू रौतेली

तीलू रौतेली का जन्‍म पौड़ी गढ़वाल में हुआ. उनके पिता का नाम भूपसिंह रावत और माता का नाम मैणावती था. तीलू के दो भाई थे, जिनके नाम भगतु और पथ्‍वा थे. तीलू के बचपन का नाम तिलोत्तमा था. 

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माता-पिता

प्‍यार से लोग इन्‍हें तीलू बुलाने लगे. तीलू के पिता गढ़वाल नरेश की सेना में थे और इन्हें गढ़वाल के राजा ने गुराड गांव की थोकदारी भी दी थी. उस समय पहाड़ों पर बाल विवाह का प्रचलन था. 

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बाल विवाह

यही वजह रही कि तीलू का विवाह महज 15 साल की उम्र में इड़ा गांव के भवानी सिंह नेगी के साथ कर दिया गया.  

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18वीं शताब्‍दी

18वीं शताब्दी के बाद कत्यूरी पतन की ओर बढ़ने लगे और कुमांऊ क्षेत्र में चंद वंश प्रभावशाली होता गया. अब गढ़वाल में पवार वंश स्थापित था और कुमाऊं में चंद वंश. 

 

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पिता और भाई को भी खोया

कत्यूरी तिनकों की तरह इधर उधर बिखरने लगे थे जिस वजह से उन्होंने चारों तरफ लूटपाट करनी शुरू कर दी. एक बार कत्यूरी राजाओं ने गढ़वाल पर हमला बोल दिया. राजा मानशाह और कत्यूरों के बीच लड़ाई हुई. इस युद्ध में तीलू के पिता भूपसिंह रावत भी मारे गए. 

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पति की मौत

इसके बाद तीलू के दोनों भाई भी मार दिए गए. कांडा में आक्रमण के दौरान तीलू का पति भी शहीद हो गए. पूरे परिवार को खोने के बाद तीलू ने बदले की ठानी. 

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15 साल में अपनी सेना बनाई

15 साल की उम्र में ही तीलू ने अपनी दो सहेलियों बेल्लू और रक्की के साथ मिलकर एक सेना बना ली. तीलू ने सबसे पहले खैरगढ़ जीता फिर टकौलीगढ़. 

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13 किलों को जीता

ऐसे ही इस 15 साल की वीर बाला ने एक के बाद एक 7 सालों में 13 किलों को पतह किया और विजय का परचम लहराया. 

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दुश्‍मन थर-थर कांपते थे

तीलू के शौर्य वीरता सारे उत्तराखंड में कुछ इस तरह फैल गई थी कि दुश्मन तीलू का नाम सुनते ही थर-थर कांपने लगते थे. 

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मारने की योजना बनाने लगे

हर कोई तीलू को सामने से युद्ध में पराजित करने में असमर्थ था, तो वो तीलू को धोखे से मारने की योजना बनाने लगे. 

 

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वीरगति को प्राप्‍त हुई

तीलू 7 साल बाद जब अपने घर वापस लौट रही थीं तो रास्ते में पानी देखकर वो नदी के पास रुक गई, जब वो नदी में पानी पीने लगी तो पीछे से एक कत्यूरी सैनिक ने उस पर हमला कर दिया. 

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गर्व के साथ याद करते हैं

हमले का सामना नहीं कर पाई और वीरगति को प्राप्त हो गई. आज भी तीलू रौतेली को उत्तराखंड में बड़े ही गर्व के साथ याद किया जाता है. 

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हर साल कांडा मेले का आयोजन

तीलू की याद में उत्तराखंड में हर साल कांडा मेला भी लगता है. उत्तराखंड की सरकार हर साल उल्लेखनीय कार्य करने वाली महिलाओं को पुरस्‍कृति भी करती है.  

 

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