Govardhan Puja 2023, Govardhan Arti: अगर आप भी गिरीराज को प्रसन्न करना चाहते हैं तो गोवर्धन पूजा के बाद आरती जरूर करना चाहिए. ऐसा करने से व्यक्ति की सारी मनोकामना पूरी होती है.
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Govardhan Puja 2023: पूरे देश में दिवाली की धूम देखने को मिल रही है. 13 नवंबर को गोवर्धन पूजा है. हिंदू पंचांग के अनुसार, हर वर्ष कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा की जाती है. पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने देवराज इंद्र के घमंड को चूर करने के लिए गोवर्धन पर्वत उठाकर उन्हें पराजित किया, तब से गोवर्धन पूजा मनाई जाती है. इस पर्व पर गिरीराज गोवर्धन, श्री कृष्ण और गौ माता की पूजा का विशेष महत्व है. गोवर्धन पर्वत के रूप में प्रकृति की पूजा की जाती है.
इस पूजा में गोवर्धन पर्वत के रूप में प्रकृति की पूजा की जाती है. इसके साथ ही गायों की भी पूजा की जाती है. मान्यता है कि जो भी गोवर्धन पूजा को पूरे विधि-विधान से करता है, उसके धन-संतान, समृद्धि और सुख में वृद्धि होती है. अगर आप भी गिरीराज को प्रसन्न करना चाहते हैं तो गोवर्धन पूजा के बाद आरती जरूर करना चाहिए. ऐसा करने से व्यक्ति की सारी मनोकामना पूरी होती है. भगवान श्री कृष्ण की गोवर्धन लीला का वर्णन विष्णु पुराण के पंचम खंड के 10, 11 एवं 12वें अध्याय में भी किया गया है.
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
॥ श्री गोवर्धन महाराज...॥
तोपे पान चढ़े, तोपे फूल चढ़े,
तोपे चढ़े दूध की धार।
॥ श्री गोवर्धन महाराज...॥
तेरे गले में कंठा साज रेहेओ,
ठोड़ी पे हीरा लाल।
॥ श्री गोवर्धन महाराज...॥
तेरे कानन कुंडल चमक रहेओ,
तेरी झांकी बनी विशाल।
॥ श्री गोवर्धन महाराज...॥
तेरी सात कोस की परिकम्मा,
चकलेश्वर है विश्राम।
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
गिरिराज धारण प्रभु तेरी शरण।
श्रीकृष्ण की आरती
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली।
लतन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।
गगन सों सुमन रासि बरसै; बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग;
अतुल रति गोप कुमारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा।
स्मरन ते होत मोह भंगा; बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच;
चरन छवि श्रीबनवारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू; हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद।।
टेर सुन दीन भिखारी की॥ श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
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