अजब-गजब: हवा में उछलता है किस्मत का सिक्का, चित-पट तय करती है कौन उठाएगा यात्री की गठरी
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अजब-गजब: हवा में उछलता है किस्मत का सिक्का, चित-पट तय करती है कौन उठाएगा यात्री की गठरी

वाराणसी के कैंट स्टेशन पर खास इंतजाम हैं. यहां झिकझिक और चिकचिक का झंझट नहीं है. चित और पट के इस खेल से न लड़ाई की गुंजाइश रह जाती है बल्कि इस परंपरा का पालन कर कुली आराम से अपना भरण-पोषण करते हैं.

सांकेतिक तस्वीर.

वाराणसी: आपने बल्लेबाजी या गेंदबाजी चुनने के लिए सिक्का उछलते तो कई बार देखा होगा. लेकिन एक ऐसा भी रेलवे स्टेशन है जहां सालों से कुली सिक्का उछाल कर यह तय करते हैं कि किसके सिर पर यात्रियों की गठरी जाएगी. जिसके पक्ष में सिक्का गिरता है वही यात्रियों का सामान उठाता है. 

कैंट स्टेशन पर नहीं होती छीना झपटी 
आपने अक्सर रेलवे स्टेशन पर देखा होगा कि यात्री जैसे ही स्टेशन पर उतरते हैं. कुलियों की छीना झपटी शुरू हो जाती है. पहले मैं..पहले मैं के चक्कर में कुली मारम काट पर उतर आते हैं. लेकिन वाराणसी के कैंट स्टेशन पर इससे इतर इंतजाम हैं. यहां झिकझिक और चिकचिक का झंझट नहीं है. चित और पट के इस खेल से न लड़ाई की गुंजाइश रह जाती है बल्कि इस परंपरा का पालन कर कुली आराम से अपना भरण-पोषण करते हैं.

ऐसे होता है किस्मत का खेल
मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक कुलियों का पाला बनाकर टॉस के लिए सिक्का उछाला जाता है. जिसके पक्ष में सिक्का गिरता है, वह सामान उठाने जाता है. उसके अलावा कोई और यात्रियों का बोझ उठाने नहीं जाता. हालांकि अगर पैसों को लेकर यात्री और कुली के बीच सहमति नहीं बनती तो दूसरा कुली यात्री से संपर्क कर सकता है. इसके अलावा जिन कुली की किस्मत में सिक्का नहीं भी गिरता उनको भी आपसी सहमति से यात्रियों के बोझ उठाने की अनुमति दे दी जाती है.

जीआरपी और आरपीएफ कर्मचारी भी ऐसा करने से नहीं रोकते
जीआरपी और आरपीएफ के कर्मचारी भी उन्हें ऐसा करने से नहीं रोकते हैं. दरअसल, हवा में उछलने वाला सिक्का किसी जुआ का हिस्सा नहीं है. बल्कि मेहनत की कमाई का एक ऐसा रास्ता है, आपसी सहमति से होता है. बताया जाता है कि इसी नियम की बदौलत यहां 184 यात्री मित्रों के परिवार का भरण पोषण होता है.

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