The Mughal Harem: गद्दी के लिए मुगलों ने जमकर खून बहाया. कई बार अपने ही भाइयों का सिर कलम करवा दिया गया. शाहजहां के पिता जहांगीर ने अपने भाई दान्याल को मरवाया. और शाहजहां ने अपने दो भाइयों ख़ुसरो और शहरयार की मौत काआदेश दिया. शाहजहां के लाडले बेटे को किसने मौत के घाट उतारा यहाँ पढ़ें यह क्रूर कहानी.
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Mughal Harem: भारत में मुगलों ने लगभग 200 साल तक राज किया. मुगलों की तानाशाही और क्रूरता केवल हिन्दुओं पर अत्याचार तक ही सीमित नहीं थी बल्कि वह राज पाठ हथियाने के लिए अपने ही सगे सम्बन्धियों का खून बहाने से भी नहीं कतराते थे. बाबर, हुमायू, अकबर, जहांगीर और शाहजहां के बाद छठी पीढ़ी का मुग़ल राजा हुआ औरंगजेब. औरंगजेब मुगलों में सबसे क्रूर और अत्याचारी राजा साबित हुआ. औरंगजेब तालमहल बनाने वाले शाहजहां का बेटा था.
शाहजहां का सबसे बड़ा बेटा था दारा शिकोह. दारा शिकोह कवि, धर्मशास्त्री और बहुत बड़ा विचारक था. उसको लिखने पढ़ने में अधिक रूचि थी इसलिए वह अस्त्र सस्त्र से दूर रहने लगा. उसको युद्ध और सैन्य मामलों में कोई रूचि नहीं थी. शाहजहां भी दारा शिकोह से बहुत प्रेम करता था और अपने इस बेटे को न ही सैन्य अभ्यास के लिए भेजता और न ही किसी युद्ध का हिस्सा बनने देता था.
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औरंगजेब और दाराशिकोह का रिश्ता
दाराशिकोह जितना ही युद्ध से दूर रहना चाहता था औरंगजेब को युद्ध उतना ही पसंद था. वह बहुत ताकतवर भी था. एक बार औरंगजेब ने अपनी निडरता दिखाते हुए सेना के सबसे शक्तिशाली बेकाबू हाथी को अकेले ही काबू में कर लिया था. तहस नहस पर आमदा इस हाथी को काबू कर औरंगजेब ने साबित कर दिया कि उसमे शासक बनने के गुण मौजूद हैं. औरंगजेब को अपने पिता का सब प्यार अपने भाई दारा शिकोह पर लुटाना हरगिज पसंद नहीं था. उसे दाराशिकोह में राजा बनने की कोई काबिलियत नजर नहीं आती थी. किन्तु वह जानता था कि बड़े बेटे होने के नाते दिल्ली का अगला सुल्तान दाराशिकोह ही बनेगा.
दाराशिकोह की हत्या
शाहजहां ने अपने अंतिम समय में दिल्ली दरबार की गद्दी दाराशिकोह को दे दी. औरंगजेब को यह बात हजम नहीं हुई और उसने दिल्ली पर आक्रमण कर दिया. बिना किसी युद्ध अनुभव के दाराशिकोह अपने सेना के साथ मैदान में चला गया. उसकी सेना में छोटे दुकानदार, कपडे और बर्तन बेचने वाले शामिल थे. दारा युद्ध बुरी तरह हारा और अपनी जान बचाने के लिए मुल्तान, अजमेर और अफगानिस्तान तक भागा किन्तु अंत में पकड़ा गया. उसे नाममात्र कपडे पहनाकर एक बीमार हाथी पर दिल्ली में घुमाया गया. अंत में उसके सिर को धड़ के अलग करके थाली में सजाकर पिता शाहजहाँ को भेंट किया गया.
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