Kachori History: क्या आपने ये सोचा है कि बनारस की फेमस कचौड़ी का इजाद कहां हुआ? आइए आज हम आपको इसके इतिहास से रूबरू कराते हैं...
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नई दिल्ली: Kachori History: भारत के स्ट्रीट फूड की बात करें, तो समोसा और कचौड़ी का नाम सबसे पहले आता है. अगर कचौड़ी की बात की जाए, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश का कोई तोड़ नहीं है. खासकर वाराणसी, जिसे बनारास भी कहा जाता है, वहां की कचौड़ी पूरे भारत में फेमस है. ठठेरी बाजार में राज बंधु से लेकर लंका की चचिया तक की दुकान पर कचौड़ी का स्वाद अलग-अलग तरीके से परोसा जाता है. लेकिन क्या आपने ये सोचा है कि बनारस की फेमस कचौड़ी का इजाद कहां हुआ? आइए आज हम आपको इसके इतिहास से रूबरू कराते हैं...
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मारवाड़ियों की देन है कचौड़ी
समोसे को लेकर इतिहासकार इस बात का दावा करते हैं कि वह मिलिड ईस्ट से भारत आया. लेकिन कचौड़ी को लेकर ऐसा कोई खास दावा नहीं मिलता है. हालांकि, बताया जाता है कि कचौड़ी का जन्म भारत में हुआ और इसकी रचयिता बना मारवाड़ी समाज. राजस्थान में व्यापरियों के मार्गों पर इसकी बिक्री शुरू हुई और धीरे-धीरे पूरे भारत में फैल गया.
गरम मसाला नहीं, ठंडे मसाले की देन है कचौड़ी
इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, प्राचानी समय में राजस्थान के मारवाड़ से व्यापारिक रास्ता गुजरा करता था. यहां गर्मी की वजह से ठंडे मसाले का चलन का था, जिसमें धनिया, सौंफ और हल्दी का इस्तेमाल किया जाता था. इन्हीं के इस्तेमाल से कचौड़ी की भी शुरुआत हुई. अगर आप देखें, तो मारवाड़ी राजस्थान से निकल कर पूरे देश में फैल गए. बनारस इससे अछूता नहीं है.
कैसे अलग है बनारस की कचौड़ी
हालांकि, ऐसा नहीं है कि जैसी कचौड़ी राजस्थान या मारवाड़ में परोसी जाती है, ठीक वैसी ही बनारस में भी खाई जाती है. दरअसल, कचौड़ी जहां भी गई, अपने हिसाब से ढल गई. राजस्थान में मूंगदाल और प्याज की कचौड़ी का चलन है. वहीं, उत्तर प्रदेश में कचौड़ी के अंदर आलू से लेकर उड़द दाल तक भरा जाता है. यहां तक कई घरों में हरे मटर का भी इस्तेमाल किया जाता है. ठीक ऐसे ही बनारस की कचौड़ी में उड़द दाल को भरा जाता है. साथ में आलू की सब्जी के संग परोसा जाता है.
हालांकि, ये बताया जाता है कि राज कचौड़ी का जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ. लेकिन राज कचौड़ी, खुद को कचौड़ी बिरादरी से अलग पाता है. यह चाट के ज्यादा करीब है. कभी चाट की भी कहानी सुनाई जाएगी.