कहा जाता है कि कल्याण सिंह (Kalyan Singh) को खुद में इतना अति आत्मविश्वास हो गया कि देश के पीएम से अदावत कर ली.
Trending Photos
रजत सिंह/ लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी के लिए साल 2014 के बाद एक बार ऐसा भी समय आया था, जब इसे दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी कहा गया. बूथ लेवल से लेकर प्रधानमंत्री तक पार्टी के पास करोड़ों काडर हैं. देश के राजनीतिक रूप से सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में इसी पार्टी की सरकार है. लेकिन यह सफर इतना आसान नहीं रहा. यहां तक पहुंचने के लिए जनसंघ से लेकर भाजपा तक कुल तीन पीढ़ियों के नेता खप गए. यही स्थिति पार्टी की उत्तर प्रदेश में भी रही. लंबे संघर्ष के बाद यूपी में 24 जून 1991 में पहली बार भाजपा की सरकार बनी. पहली बार भाजपा को एक ऐसा नेता मिला, जिसने ना सिर्फ सत्ता का स्वाद चखाया, बल्कि एक आत्मविश्वास भी दिया. लेकिन कहा जाता है कि उसमें खुद में इतना अति आत्मविश्वास हो गया कि देश के पीएम से अदावत कर ली.
यह किस्सा है यूपी में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री कल्याण सिंह (Kalyan Singh) का. अमित शाह से पहले भाजपा में एक और चाणक्य हुआ करते थे. उनका नाम था गोविंदाचार्य. सोशल इंजीनियरिंग का पहला प्रयोग उन्होंने ऐसा किया सिर्फ बनियों की पार्टी कही जाने वाली भाजपा को सभी समुदायों से वोट मिलने लगा. जब यूपी में पहला मुख्यमंत्री चुना गया, तो वो भी पिछड़ों का प्रतिनिधित्व करता था. इसी सोशल इंजीनियरिंग का हिंदू वादी प्रयोग थे कल्याण सिंह.
लगातार 8 बार विधायक रहने वाले कल्याण सिंह
कल्याण सिंह ने अपने करियर की शुरुआत जनसंघ के साथ की. अलीगढ़ की अतरौली सीट से साल 1962 में पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. दूसरी बार फिर इसी सीट पर किस्मत आजमाई. इस बार 4000 वोटों से मात दी. यहीं नहीं, वह लगातार इस सीट से 8 बार विधायक बने. साल 2017 में इसी सीट से कल्याण सिंह पौत्र संदीप सिंह भाजपा के विधायक बने.
राम मंदिर का हीरो, बाबरी का विलेन
जनसंघ के समय से ही कल्याण सिंह पिछड़ों को चेहरा बन कर सामने आए. लेकिल असली पास, तब पलटा, जब जनसंघ से भाजपा बन गई. 90 के दशक में राम मंदिर का मुद्दा उछलने लगा. एक तरफ आडवाणी अपना रथ लेकर निकले, तो दूसरी ओर कारसेवक अयोध्या की ओर कूच करने लगे. तब जनता पार्टी की ओर से सीएम बने मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि विवादित स्थल पर कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता है. लेकिन कारसेवक पहुंच गए और इस बीच गोली चल गई. और गोलियां चलने के बाद कल्याण सिंह जैसे नेताओं ने सड़क पर हल्ला काट दिया. ना सिर्फ जनता पार्टी की सरकार चली गई, बल्कि राम रथ पर सवार भाजपा 221 सीटें लेकर यूपी की सत्ता पर पहुंच गई. कल्याण सिंह सीएम बने. लेकिन कल्याण सिंह के कार्यकाल में 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिरा दिया गया. हालात, ये हुई कि राज्यपाल ने सरकार बर्खास्त कर दी.
जब अटल बिहारी से की अदावत
कल्याण सिंह हमेशा से आडवाणी खेमे के माने जाते थे. साल 1999 आते-आते अटल और कल्याण के रिश्ते में कड़वाहट आ गई. कल्याण ने यहां तक कह दिया, ' मैं भी चाहता हूं कि वो पीएम बनें. लेकिन उन्हें पीएम बनने के लिए पहले एमपी बनना होगा'. गौरतलब है कि इसके बाद कल्याण सिंह को पार्टी से बाहर निकाल दिया गया. अटल लखनऊ से लड़े और जीते भी. वह देश के प्रधानमंत्री भी बने. लेकिन कल्याण सिंह की राजनीतिक स्थिति खराब होती गई. अपनी पार्टी बनाई. सफलता नहीं मिली, तो साल 2007 में भाजपा में वापसी हुई. भाजपा उनके नेत्तृव में चुनाव लड़ी, लेकिन हार गई. उन्होंने फिर भाजपा का साथ छोड़ दिया और मुलायम की मदद से लोकसभा पहुंच गए. ध्यान देने वाली बात यह है कि मुलायम का विरोध करके की उन्होंने सत्ता हासिल की थी. साल 2010 में दूसरी पार्टी बनाई पर सफल नहीं हुए. 2013 में एक बार फिर वापसी की. राजस्थान और हिमाचल के राज्यपाल भी बने. उनके दौर के नेता नरेंद्र मोदी और राजनाथ सिंह इस वक्त प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री हैं. लेकिन कल्याण सिंह उस अदावत के बाद उभर नहीं पाए.