उत्तराखंड की इस खदान में हैं 50 हजार आत्माएं, दहशत में रहते हैं लोग, सुनाई देती हैं भयंकर चीखें
लोकल लोगों ने बताया है कि लंबी देहर चूना पत्थर की माइंस हुआ करती थीं. अंग्रेजों के जमाने से चल रही इन खदानों को साल 1996 में सील कर दिया गया था...
देहरादून: उत्तराखंड अपनी खूबसूरती के लिए दुनिया भर में जाना जाता है. टूरिस्ट अपनी रोजमर्रा की जिंदगी से ऊब कर शांति और नेचर के बीच रहने के लिए उत्तराखंड तो आते ही हैं, साथ ही एडवेंचर लवर्स भी यहां पर ट्रेकिंग, हाइकिंग, वॉटर राफ्टिंग जैसी कई मजेदार एक्टिविटी करते हैं. लेकिन पहाड़ों की इस खूबसूरती के बीच एक ऐसी जगह भी है, जहां लोग जाना तो दूर उसके बारे में बात भी नहीं करना चाहते. इस जगह के बारे में अगर आप जानेंगे तो शायद सहम जाएंगे, क्योंकि यह उत्तराखंड की सबसे डरावनी जगह मानी जाती है.
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लंबी देहर खदान की कहानी
हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड में मसूरी से कुछ किलोमीटर दूर, लंबी देहर खदान की. बताया जाता है कि इस जगह के कुछ किलोमीटर तक लोगों को दहशत और डर का एहसास होता है. कई भूतिया और डरावनी कहानियों इस खदान से जुड़ी हैं, जो लोगों को इस ओर कदम बढ़ाने से रोक देती हैं. आसपास के लोग अक्सर नए टूरिस्ट को यहां न जाने की चेतावनी देते हैं और वह प्रचलित कहानियां सुनाते हैं. बता दें, इस जगह पर कई हॉरर फिल्मों और सीरियल्स की शूटिंग की गई है. आप वहां के किसी भी व्यक्ति से लंबी देहर का रास्ता पूछेंगे तो वह दहशत में आ जाएंगे और आपको वहां जाने से मना करेंगे.
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इस भयानक हादसे ने खदान को बनाया भूतिया
कहानी साल 1990 की है. बताया जाता है कि उस समय यहां माइनिंग चल रही थी और हजारों की तादाद में मजदूर खदान के अंदर काम कर रहे थे. लेकिन माइनिंग की गलत प्रक्रिया के चलते करीब 50 हजार मजदूर खदान में दबकर मर गए. वहीं, जो मजदूर इस खदान के पास थे, उन्हें लंग्स की बीमारी हो गई और वह खांस-खांसकर मर गए. यह भी कहा जाता है कि सभी मजदूरों को खून की उल्टियां हुई थीं. हजारों मौतों के बाद लंबी देहर माइंस मसूरी की सबसे खतरनाक जगह बन गई. उस भयानक हादसे का एहसास आज भी वहां जाने वाले लोगों को होता है. कइयों ने बताया है कि वहां का माहौल इतना निगेटिव लगता है, मानों जीने का कोई मकसद ही न बचा हो.
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लंबी देहर थी चूना पत्थर की खदान
लोकल लोगों ने बताया है कि लंबी देहर चूना पत्थर की माइंस हुआ करती थीं. अंग्रेजों के जमाने से चल रही इन खदानों को साल 1996 में सील कर दिया गया था.
हर साल होने लगे थे बडे़ हादसे
बताया जा रहा है कि इन खदानों के पास जाने वाले लोगों को अक्सर चीखें और रोने की आवाजें सुनाई देती हैं. कभी कोई चिल्लाते हुए बचाने की गुहार लगाता है, कभी मदद की अपील करता सुनाई पड़ता है. लेकिन आसपास दिखाई कोई नहीं देता. स्थानीय लोगों का कहना है कि उस जगग के पास हर साल हादसों की संख्या बढ़ने लगी थी. यही वजह थी कि माइंस को बंद किया गया. यहां पर महज 20 लोग रहते हैं और उनके मुताबिक, इस जगह पर आत्माओं का वास है, तो चीखती, चिल्लाती या रोती रहती हैं. लोगों ने बताया कि इस खदान के सामने से गुजरने वाला या तो मौत के मुंह में जाता है या फिर उसका भयंकर एक्सीडेंट हो जाता है.
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जंगल में तब्दील हो गई है खदान
फिल्हाल, लंबी देहर माइंस के आस-पास अब पेड़ उग आए हैं, जिनसे खदानें ढक गई हैं. सामने से दिखाई नहीं पड़तीं. अब वह जगह जंगल बन गई है. हालांकि, अभी भी लोगों को चीखने-चिल्लाने की आवाजें सुनाई देती हैं और अक्सर यहां हादसे भी होते रहते हैं. यही वजह है कि रात में कोई भी इस इलाके में नहीं आता. बुजुर्ग बताते हैं कि एक समय पर यहां पर चुड़ैल का साया रहा करता था. इस वजह से एक्सीडेंट्स होना आम बात हो गई थी. एक बार यहां हेलीकॉप्टर भी क्रैश हुआ था, जिसकी वजह आज तक किसी को नहीं पता चल सकी.
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