Knowledge: Keyboard के अल्फाबेट्स में क्यों है झोल? बनाने वाले ने सीधे अक्षरों में क्यों नहीं बनाया?
Advertisement
trendingNow0/india/up-uttarakhand/uputtarakhand876525

Knowledge: Keyboard के अल्फाबेट्स में क्यों है झोल? बनाने वाले ने सीधे अक्षरों में क्यों नहीं बनाया?

 पहले ABCDE... फॉर्मेट पर ही कीबोर्ड बना, लेकिन उन्होंने यह देखा कि जितनी स्पीड और सुविधाजनक टाइपिंग की उम्मीद की जा रही थी, वह नहीं हो पा रहा था. इसलिए और एक्सपेरिमेंट्स शुरू हुए...

Knowledge: Keyboard के अल्फाबेट्स में क्यों है झोल? बनाने वाले ने सीधे अक्षरों में क्यों नहीं बनाया?

नई दिल्ली: बचपन में जब नया-नया कंप्यूटर चलाना सीखा था, तो कीबोर्ड पर अक्षर ढूंढने में कुछ सेकंड लग जाते थे. ढूंढते-ढूंढते 10 वर्ड टाइप करने में हम बहुत समय गवां देते थे. तब सबने जरूर सोचा होगा कि कीबोर्ड बनाने वाला कितना नासमझ था. अगर उसने ये अल्फाबेट्स इधर-उधर लिखने के बजाय लाइन से ABCD... में लिखे होते तो टाइपिंग करना कितना आसान हो जाता! लेकिन बड़े होकर, जब बिना कीबोर्ड की तरफ देखे धड़ाधड़ टाइपिंग शुरू की, तब समझ आया कि कीबोर्ड के अक्षरों का उलटफेर कोई भूल नहीं, बल्कि कई सालों की सोच-समझ का नतीजा है, जिसकी वजह से आज हमारे लिए टाइपिंग मिनटों का खेल हो गई है...

ये भी पढ़ें: क्या होता है IFSC, क्यों पैसे ट्रांसफर करते वक्त पड़ती है इसकी जरूरत, क्या आपको है पता?

1868 से चल रहा था जतन
दरअसल कीबोर्ड का इतिहास टाइपराइटर से जुड़ा है. यानी कंप्यूटर या कीबोर्ड आने से पहले ही QWERTY Format चला आ रहा है. साल 1868 में Christopher Latham Sholes, जिन्होंने टाइपराइटर का इन्वेंशन किया था, उन्होंने पहले ABCDE... फॉर्मेट पर ही कीबोर्ड बनाया. लेकिन उन्होंने यह पाया कि जितनी स्पीड और सुविधाजनक टाइपिंग की उन्होंने उम्मीद की थी, वह नहीं हो पा रहा है. इसके साथ ही Keys को लेकर कई और दिक्कतें भी सामने आ रही थीं.

ये भी पढ़ें: KNOWLEDGE: ज्यादातर लोग गलत बताते हैं ATM का फुल फॉर्म; इसके इन्वेंटर का है India से कनेक्शन

अब अगर आप ABCD Format Keyboard देखेंगे तो आपको थोड़ा अजीब लगेगा...

fallback

ये भी पढ़ें: ट्रेन से सफर सब करते हैं, लेकिन नहीं जानते होंगे PNR नंबर के बारे में यह बातें, जानें यहां

इतनी मेहनत के बाद क्यों चुना गया यही फॉर्मेट
ABCD वाले कीबोर्ड की वजह से टाइपराइटर पर लिखना मुश्किल हो रहा था. मुख्य कारण तो यह था कि उसके बटन एक दूसरे के इतने करीब थे कि मुश्किल से टाइपिंग होती थी. इसके अलावा, अंग्रेजी में कुछ अक्षर ऐसे हैं, जिनका इस्तेमाल ज्यादा किया जाता है (जैसे E,I,S,M) और कुछ शब्दों की बहुत कम ही जरूरत पड़ती है (जैसे Z, X, आदि). ऐसे में, ज्यादा इस्तेमाल में आने वाले अक्षरों के लिए उंगली को पूरे कीबोर्ड पर घुमाना पड़ता था और टाइपिंग स्लो हो जाती थी. इसलिए कई नाकाम एक्सपेरिमेंट्स के बाद 1870 के दशक में आया QWERTY Format. जिसने जरूरी अक्षरों को उंगलियों की रीच में रख दिया.

fallback

ये भी पढ़ें: कहीं आप भी तो नहीं हो जाते रेज्यूमे, CV और बायोडेटा में कंफ्यूज? आसान भाषा में जानें अंतर

बीच में आया था Dvorak Model
इन एक्सपेरिमेंट्स के बीच एक और फॉर्मेट आया था- Dvorak Model. यह मॉडल अपनी Keys से फेमस नहीं हुआ था, बल्कि इसके इन्वेंटर August Dvorak के नाम पर पड़ा था. हालांकि, यह कीबोर्ड बहुत दिन तक चर्चा में नहीं रहा. क्योंकि यह अल्फाबेटिकल तो नहीं था लेकिन आसान भी नहीं था. लोगों को QWERTY मॉडल ही सबसे ज्यादा पसंद आया इसलिए यही प्रचलित हुआ. 

fallback

यह रहा कीबोर्ड की ABCD का पूरा गणित. हम आगे भी ऐसे ही कुछ मजेदार फैक्ट्स वाली जानकारी आपके लिए लाते रहेंगे. 

WATCH LIVE TV

Trending news