ये कहानी साहस और बलिदान की मिसाल पेश करती है, वीरांगना ऊदा देवी के बारे में कई किताबे भी है. उनका जीवन दर्शाता है, कि कैसे परिस्थियों का सामना किया जाता है. ऊदा देवी ने हंसते हुएं अपने प्राणों की आहुति देश को दे दी. देश में आजादी की अलख जलाए रखने के लिए इस वीरांगना की की कहानी ही काफी है.
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एक मामूली सैनिक जो अवध के नवाब वाजिद अली शाह की बेगम हजरत महल की सुरक्षा में आठों पहर अपने आप को तैनात रखती थीं. जिसके पति को अंग्रेजो द्वारा मार दिया गया, पर उसका मन भयभीत होने की वजह और भी साहसी और निडर हो गया. 1857 की जंग शुरू थी. देश में चारों तरफ अंग्रेजों का आतंक था, स्वतंत्रता सेनानी अपनी जान की बाजी लगाने के लिए तैयार थे. पर इन्हीं के बीच देश में आजादी की अलख जलाए एक वीरांगना तैयार हो रही थी.
महान वीरांगना ऊदा देवी
आज एक हम आपको ऐसी ही महान वीरांगना के बारे में बताने जा रहे है. जो अवध के नवाब वाजिद अली शाह की बेगम हजरत महल की सुरक्षा में तैनात थीं. देश भक्ति उनके खून में उबाल मारती रहती. अंग्रेजी राज उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं था. वे चाहती थीं कि किसी भी तरह से अंग्रेज अवध से चले जाएं, ऐसा हुआ नहीं. लखनऊ के चिनहट इलाके में अंग्रेजी सेना और नवाब की सेना आपस में भिड़ी. खूब खून-खराबा हुआ और उनके पति भी इस युद्ध में शहीद हो गए. फिर यह एक मामूली सिपाही बदले की ज्वाला लिए अंग्रेजों पर टूट पड़ी और एक ही दिन में 36 अंग्रेजों को मौत की नींद सुला दिया. अंग्रेजी सेना को दिन में ही यह कारनामा दिखाने वाली वीरांगना का नाम था ऊदा देवी.
दोनों पक्षो के मारे गए कई जवान
आप को बता दें ऊदा देवी और उनके पति मक्का फासी, ये दोनों नवाब वाजिद अली शाह की सेना में तैनात थे. 1857 की जंग शुरू थी. ऊदा देवी की ड्यूटी बेगम हजरत महल की सुरक्षा में लगी थी. इस बीच अंग्रेजों ने नवाब वाजिद अली शाह को अवध से निर्वासित जीवन बिताने को कलकत्ता भेज दिया. तब बेगम हजरत महल ने आजादी की अलख बुझने नहीं दी. वे खुद सेना का नेतृत्व करने लगी. बेगम हजरत महल की सुरक्षा में तैनात ऊदा देवी के पति मक्का पासी भी इस युद्ध में शहीद हुए. ऊदा देवी निर्देश पर चिनहट में अंग्रेजी सेना और नवाबी सेना में तगड़ी भिड़ंत हो गई. इसमें दोनों ही पक्षों के कई जवान मारे गए. पति की मौत के बाद ऊदा देवी ने ठान लिया कि अब वह शांत नहीं बैठेगी. उन्होंने बंदूक उठाया और पहुंच गईं सिकंदर बाग.
पुरुषों की वर्दी में कर दिया अंग्रेजी खेमा चौपट
यहां बड़ी संख्या में भारतीय जवान पहले से मौजूद थे. अंग्रेजों को जब इसकी भनक लगी तो उन्होंने सिकंदरबाग पर हमला करने की तैयारी के साथ पहुंचे. अंग्रेज कुछ करते, उससे पहले ऊदा देवी सिकंदरबाग में मौजूद पीपल के पेड़ पर चढ़ गईं. वे पुरुषों की वर्दी पहने हुए थीं. 16 नवंबर 1857 का दिन था. पीपल के पेड़ से ही उन्होंने एक-एक कर कुछ तय अंतराल पर 36 अंग्रेज सिपाही गोलियों से भून दिया. किसी को कुछ नहीं पता चल पा रहा था कि आखिर यह हमला कैसे और कहां से हुआ? जब अंग्रेजों को इस घटना के बारें में पता चला तो वह भौंचक्के रह गए. गुस्साएं हुए अंग्रेजों ने सिकंदर बाग में शरण लिए भारतीय वीरों पर हमला कर दिया और बड़ी संख्या में नरसंहार किया. इसे 16 नवंबर के गदर के रूप में याद किया जाता है.
कुछ नहीं समझ पा रहे थे अंग्रेज
इस घटना में किसी भी अंग्रेज को ये समझ नहीं आ रहा था, कि गोलियां चल कहां से रही है. इतमें एक अंग्रेज की नजर पीपल के पेड़ पर पड़ी जिसमें उसने देखा कि वर्दी पहने एक सिपाही अंग्रेजों पर ताबड़तोड़ गोलियो कि बरसात कर रहा है. अंग्रेज समझ चुके थे कि उनके 36 जवान कैसे मरें बिना समय गवाए उन्होंने उस सिपाही पर निशाना साध दिया गोली लगते ही वह जवान नीचे गिर गया. बाद में जांच पड़ताल में पता चला कि वह पुरुष नहीं बल्कि महिला थी जिनका नाम था ऊदा देवी.
आजादी का सिपाही
तभी से वीरांगना ऊदा देवी को देश की आजादी के सिपाही के रूप में, शहीद के रूप में याद किया जा रहा है. लखनऊ में आज भी उनका नाम बेहद सम्मान से लिया जाता है. उसी सिकंदरबाग चौराहे पर ऊदा देवी की प्रतिमा लगी हुई है. वहां हर साल उनकी जयंती-पुण्यतिथि पर आयोजन भी होते हैं. फिर बाद में समय के साथ ऊदा देवी के इतिहास और जीवन से जुड़ी काफी पुस्तकों का भी प्रकाशित हुई.