कांग्रेस के 4 बार अध्यक्ष रहे मालवीय, बापू ने क्यों दी महामना की उपाधि, BHU के लिए सौ साल पहले जुटाए थे करोड़ों
Pandit Madan Mohan Malaviya: महामना मदन मोहन मालवीय भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक भी है. वह एक शिक्षाविद्, पत्रकार और समाज सुधारक थे. आइए जानते है इनके जीवन के बारे में
Madan Mohan Malviya Birth Anniversary: देश तभी ताकतवर हो सकता है, जब इसके सभी समुदाय आपसी सद्भावना और सहयोग से रहें. ये वाक्य पंडित मदन मोहन मालवीय जी का है. जो आज भी देश ने नागरिकों को ये बताता है कि एकता में कितनी शक्ति होती है. उन्होंने अपने कार्यो से शिक्षा, समाज सुधार, स्वाधीनता संग्राम, पत्रकारिता और धार्मिकता के क्षेत्र में गहरा योगदान दिया. बीएयू की स्थापना, हिन्दी भाषा का प्रचार और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनकी सक्रियता उनकी दूरदर्शिता और साहस को दर्शाती है.
कब हुआ था जन्म?
पंडित मदन मोहन मालवीय का जन्म 25 दिसंबर 1861 को प्रयागराज में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा कलकत्ता विश्वविद्यालय से पूरी किया. आपको बता दे कि महामना की उपाधि महात्मा गांधी जी ने दिया था. वह चार बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने और सत्य, धर्म और शिक्षा को अपनी प्राथमिकता बनाया.
महामना का सपना और संघर्ष
बीएचयू के निर्माण के लिए जब वह चंदा इकट्ठा करने निकले, तो उनका सामना हैदराबाद के निजाम से हुआ. जब उन्होंने आर्थिक मदद मांगी, तो निजाम ने बदतमीजी करते हुए कहा कि उनके पास देने के लिए केवल जूती है. मालवीय जी ने निजाम की जूती उठाकर उसे नीलाम करने की घोषणा कर दी. यह सुनकर निजाम ने भारी दान देकर अपनी इज्जत बचाई. जब 1916 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना, इसके निर्माण के लिए 1 करोड़ 64 लाख रुपये का चंदा इकट्ठा किए थे.
स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
मदन मोहन मालवीय ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई. वह सविनय अवज्ञा आंदोलन और असहयोग आंदोलन का हिस्सा रहे. महात्मा गांधी ने उन्हें महामना की उपाधि दी और उन्हें अपना बड़ा भाई माना. वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के चार बार अध्यक्ष बने (1909, 1913, 1919, और 1932) और अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय जनता की आवाज बुलंद की.
सत्यमेव जयते को लोकप्रिय बनाना
मदन मोहन मालवीय ने 'सत्यमेव जयते' वाक्य को लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका निभाई. इसे उन्होंने 1918 में कांग्रेस अधिवेशन में इस्तेमाल किया, जिससे यह पूरे देश का आदर्श वाक्य बन गया. बाद में यह भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के नीचे अंकित किया गया।
महान विचारक और समाज सुधारक
महामना न केवल एक शिक्षाविद् और स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि एक महान समाज सुधारक भी थे उनके विचार आज भी समाज के लिए प्रेरणा हैं.
धार्मिकता और धर्म की जीत होने दें, और सभी समुदायों और समाजों की प्रगति हो, हमारी प्यारी मातृभूमि को अपना खोया गौरव वापस मिले, और भारत के पुत्र विजयी हों.
महान विचारक और समाज सुधारक
महामना न केवल एक शिक्षाविद् और स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि एक महान समाज सुधारक भी थे उनके विचार आज भी समाज के लिए प्रेरणा हैं.
धार्मिकता और धर्म की जीत होने दें, और सभी समुदायों और समाजों की प्रगति हो, हमारी प्यारी मातृभूमि को अपना खोया गौरव वापस मिले, और भारत के पुत्र विजयी हों.
निर्भयता ही स्वतंत्रता का मार्ग है. निडर बनो और न्याय के लिए लड़ो.
धर्म को चरित्र का पक्का आधार और मानव सुख का सच्चा स्रोत मानो.
देश तभी ताकतवर हो सकता है, जब इसके सभी समुदाय आपसी सद्भावना और सहयोग से रहें.
“यदि आप मानव आत्मा की आंतरिक शुद्धता को स्वीकार करते हैं, तो आप या आपका धर्म किसी भी व्यक्ति के स्पर्श या संबंध से किसी भी तरह से अशुद्ध या अपवित्र नहीं हो सकता है.”
सम्मान और विरासत
मदन मोहन मालवीय को 2014 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया. उनकी शिक्षा, विचार और योगदान आज भी हमें प्रेरणा देते हैं.
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