Navratri 2024: लखनऊ से महज एक घंटा की दूरी पर आस्था का एक बड़ा केंद्र स्थित है. जिसका सीधा संबंध लक्ष्मण के पुत्र से है. आइए जानें मां चंद्रिका देवी मंदिर का पूरा इतिहास और इससे जुड़ी कथाएं.
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मयूर शुक्ला/लखनऊ: लखनऊ शहर में देवी दुर्गा के कई रूपों में से एक चंद्रिका देवी मंदिर स्थित है जोकि एक पवित्र मंदिर हैं. यह स्थानीय लोगों के साथ ही अंतरराज्यीय लोगों के लिए भी एक प्रमुख तीर्थ स्थान है. लखनऊ शहर के बख्शी का तालाब के पास एक गांव है जिसका नाम कठवारा है. यहां पर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 24 (लखनऊ-सीतापुर रोड) के उत्तर-पश्चिम की ओर गोमती नदी के तट है. यहीं पर करीब 300 साल से यह मंदिर स्थित है. मुख्य शहर से करीब 28 किलोमीटर दूर यह मंदिर क्षेत्र दूर है. मंदिर वाले स्थान और पास के क्षेत्रों की रामायण काल से ही प्रासंगिकता है. महीसागर तीर्थ भी इस क्षेत्र को कहा जाता हैं. इस मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण में किया गया है.
250 साल पहले जगह की खोज
ऐसा कहते हैं कि लखनऊ के संस्थापक लक्ष्मण के बड़े पुत्र राजकुमार चंद्रकेतु अश्वमेघ घोड़े के साथ एक बार गोमती के किनारे से जा रहे थे कि तभी रास्ते में अंधेरा हो गया और उन्हें घने जंगल में आराम करना पड़ा. उन्होंने देवी से सुरक्षा की प्रार्थना की थी. ऐसा कहते हैं कि उस काल में यहां स्थापित एक भव्य मंदिर को विदेशी आक्रमणकारियों ने 12वीं शताब्दी में नष्ट कर दिया और फिर करीब 250 साल पहले कुछ ग्रामीणों ने जंगलों में घूमते समय इस जगह को खोजा था जो कि घने जंगल में छिपा था.
घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने की थी मां की पूजा
कहते तो ये भी हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक को इस तीर्थ के बारे में बताया था. शक्ति प्राप्त करने के लिए बर्बरीक ने इस स्थान पर लगातार 3 साल पूजा की. अमावस्या और नवरात्र की पूर्व संध्या पर यहां कई धार्मिक आयोजन किए जाते हैं. हवन (यज्ञ), मुंडन के लिए लोग दूर दूर से यहां पर आते हैं. कीर्तन, सत्संग (धार्मिक सभाएं) भी इस दौरान किए जाते हैं.
कुष्ठ रोग दूर करने वाला कुंड
नवरात्र में यहां रोज मेला लगता है. अमावस्या को लगने वाले मेले में चंद्रिका देवी मंदिर पर लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं. मंदिर के उत्तर में सुधंवा कुंड है जिसकी मान्यता है कि इस कुंड में स्नान करने से कुष्ठ रोग दूर होता है. चंद्रिका देवी मंदिर में सूखे मेवे का प्रसाद चढ़ाने का विधान है. गर्भगृह में आम श्रद्धालु जाकर पूजा भी करचे हैं और मनोकामनाएं पूरी हो सकें इसके लिए मां को चुनरी चढ़ाई जाती है.
मंदिर के खुलने का समय
इस मंदिर के बारे में पुजारी राम आसरे वाजपेई बताते है कि यहां पर देवी मां स्वयं प्रकट हुईं. पहले यहां पर नीम का खोखला पेड़ हुआ करता है जिससे देवी मां प्रकट हुईं. दुर्गा जी की 9 पिंडी हैं. चंद्रिका देवी मां के अलावा यहां पर शिवलिंग व भैरव बाबा विराजमान हैं. जिनकी भी पूजा अर्चना भी की जाती है. नवरात्रि के दिनों में मंदिर 4:00 बजे खुलता है और रात के 10:00 बजे बंद होता है. आम दिनों की बात करें तो यह 5:00 बजे खुलता है व रात के 10:00 बजे द्वार बंद किए जाते हैं. आरती सुबह के समय 7:00 बजे होती है और नवरात्रि में आरती सुबह 6:00 बजे होती है.
जब खौलते तेल में राजा के पुत्र को डाला गया
मां के मंदिर में पूजा-अर्चना पिछड़ा वर्ग के मालियों द्वारा व पछुआ देव के स्थान (भैरवनाथ) पर आराधना अनुसूचित जाति के पासियों द्वारा करवाई जाची है. ऐसा दूसरी जगह मिलना मुश्किल है. महाभारतकाल में पांडव द्रोपदी के साथ अपने वनवास के समय यहां आए थे. वहीं, महाराजा युधिष्ठिर ने जब अश्वमेध यज्ञ करवाया तो उसका घोड़ा चन्द्रिका देवी धाम के पास राज्य के तत्कालीन राजा हंसध्वज ने रोका जिस पर युधिष्ठिर की सेना से उन्हें युद्ध किया. युद्ध में महाराजा के पुत्र सुरथ तो सम्मिलित हुआ लेकिन दूसरा पुत्र सुधन्वा चन्द्रिका देवी धाम में नवदुर्गाओं की पूजा कर रहा था, युद्ध में अनुपस्थिति से महीसागर क्षेत्र में उसे खौलते तेल के कड़ाहे में डाला गया ऐसाकर उसकी परीक्षा ली गई. कहते हैं कि चन्द्रिका देवी ने सुधन्वा पर ऐसी कृपा की कि उसके शरीर पर खौलते तेल का कोई प्रभाव नहीं पड़ा. तब से ही इस तीर्थ को सुधन्वा कुण्ड भी कहते हैं. महाराजा युधिष्ठिर की सेना अर्थात कटक के यहां वास करने से इस गांव को कटकवासा कहा जाने लगा. आज इसी को कठवारा कहते हैं.
बाबा को हुए मां चंद्रिका देवी के दर्शन
चंद्रिका देवी मंदिर से करीब 4 से 5 किलोमीटर की दूरी पर जंगल के भीतर हरिवंश बाबा अक्षय वट आश्रम स्थित है. जहां पर सैंकड़ों साल पुराना एक वटवृक्ष भी है, इस पुराने पेड़ की टहनियों के कई नए पेड़ बन चुके हैं. ये सभी पेड़ 500 मीटर के दायरे में फैले हैं. जब मां चंद्रिका देवी मंदिर का पुनर्निर्माण 300 वर्ष पूर्व किया गया तो बाबा श्री हरवंश मां चंद्रिका की पूजा करते थे पर उन्हें जह एक स्वप्न आया तो उसके बाद वहां से जंगल के रास्ते वो वट वृक्ष पेड़ के पास पहुंचे. बाबा को वहां पर अद्भुत प्रतिमाएं मिलीं. इसके बाद बाबा नें अपना आश्रम यहीं वृक्षों के पास बना लिया. मां चंद्रिका देवी के दर्शन करने के बाद बाबा ने वट वृक्ष की परिक्रमा की.