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Viscera Report : उत्तर प्रदेश (Uttar pradesh) देश में आबादी के हिसाब से सबसे बड़ा राज्य है, ऐसे में राज्य के सभी 80 जिलों में रिकॉर्ड सहेजना, सुरक्षित रखना बड़ी चुनौती से कम नहीं है. लेकिन उत्तर प्रदेश में एक ऐसा जिला भी है, जिसके नाम एक अनचाहा रिकॉर्ड सामने आया है. यूपी के पीलीभीत जिले में करीब 50 साल पुरानी लाशों के अवशेष भी सुरक्षित रखे गए हैं. इसका खुलासा हाल ही में जिले के चीफ मेडिकल ऑफिसर (CMO) के नियमित निरीक्षण के दौरान हुआ. सीएमओ डॉ. आलोक कुमार यह जानकर हैरान रह गए कि पोस्टमार्टम हाउस (Postmortem House) में 500 से ज्यादा बेहद पुराने विसरा सैंपल ऐसे ही पड़े हुए हैं. इनमें से कुछ तो 50 साल से भी ज्यादा पुराने हैं. अस्पताल के पोस्टमार्टम हाउस में कुछ लाशों का विसरा 1965 से संरक्षित रखा गया है.
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इस खुलासे से सन्न सीएमओ ने बेकार पड़े इन विसरा नमूनों को लेकर जिले के पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखा है औऱ तत्काल इस पर कार्रवाई करने को कहा है. विसरा सामान्यतया ऑटोप्सी के उन मामलों में सुरक्षित रखा जाता है, जो जहर खाने के मामले से जुड़े होते हैं या जिन मामलों में मौत का कारण स्पष्ट नहीं होता है. नियमों के मुताबिक, पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सा अधिकारी की जिम्मेदारी होती है कि वो विसरा सैंपल को सुरक्षित रखे. इसका रिकॉर्ड पुलिस द्वारा रखा जाता है.
पुलिस इन विसरा सैंपल को जांच के लिए फोरेंसिक लैब भेजती है. इन विसरा नमूनों की जांच के आधार पर मौत से जुड़ी अहम जानकारियां सामने आती हैं. पोस्टमार्टम के 15 दिनों के भीतर ही केमिकल एग्जामिनेशन के लिए ये विसरा जांच कर रिपोर्ट पेश करनी होती है. इसमें खून, मूत्र, सीमेन और शरीर में मौजूद अन्य द्रव्यों में मौजूद तत्वों की जांच की जाती है. इससे शरीर में लंबे समय में मौजूद विषैले तत्वों की पहचान की जा सकती है. इसमें किडनी, लिवर जैसे अंगों की विशेष तौर पर फोरेंसिक जांच होती है.
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
विसरा लैटिन शब्द विस्कस से उत्पन्न हुआ, जिसका मतलब शरीर के अंगों से होता है. सुप्रीम कोर्ट ने 21 जनवरी 2014 को एक फैसले में संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौतों के मामले में विसरा रिपोर्ट को अनिवार्य बनाया था. AIIMS का कहना है कि सही जांच के लिए विसरा रिपोर्ट के आधार पर छह माह के भीतर नतीजे देने होते हैं.
AIIMS की रिपोर्ट...
विसरा लैटिन शब्द विस्कस से उत्पन्न हुआ, जिसका मतलब शरीर के अंगों से होता है. सुप्रीम कोर्ट ने 21 जनवरी 2014 को एक फैसले में संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौतों के मामले में विसरा रिपोर्ट को अनिवार्य बनाया था. AIIMS का कहना है कि सही जांच के लिए विसरा रिपोर्ट के आधार पर छह माह के भीतर नतीजे देने होते हैं.
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