एक तरफ राज्य की योगी सरकार मथुरा के पेड़े को दुनिया भर में पहचान दिलाने के लिए प्रयास कर रही है. वहीं मिलावटखोर इस बेहतरीन मिठाई की पहचान को धुमिल करने से बाज नहीं आ रहे हैं. जानिए क्या है पूरा मामला.
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कन्हैया लाल शर्मा/मथुरा : राधे-कृष्ण की नगरी मथुरा के पेड़े भारत ही नहीं दुनिया भर में मशहूर हैं. घरेलू पर्यटक हों या विदेशी टूरिस्ट हर कोई पेड़ा बड़े चाव से खाता है. लेकिन हैरानी की बात ये है कि पेड़े की क्वालिटी पर सवाल खड़े हो रहे हैं. दरअसल जिस पेड़े ने मथुरा का नाम देश विदेश में मशहूर किया वही पेड़ा अब मिलावट की भेंट चढ़ रहा है. खाद्य सुरक्षा विभाग द्वारा अलग-अलग जगह से लिए गए नमूनों में 40 फीसदी पेड़े के नमूने फेल हुए हैं. अर्थात लगभग आधे फीसदी पेड़े की गुणवत्ता मानकों के अनुरूप नहीं पाई गई.
मथुरा के पेड़े की गुणवत्ता को लेकर मथुरा के खाद्य सुरक्षा आयुक्त डॉ गौरीशंकर ने बताया कि 40 प्रतिशत सैंपल मानकों के अनुरूप पाए गए हैं. उन्होंने कहा कि जिन दुकानों या जगह के पेड़े गुणवत्ता विहीन हैं, उनके खिलाफ वैधानिक कार्रवाई की जाएगी. जो लोग मिलावट खोरी से बाज नहीं आएंगे उनके प्रतिष्ठानों को सील भी किया जाएगा.कुछ लोग का कहना है कि दुकानदार बची हुई मिठाइयों के चूरे को पेड़े में मिला देते हैं, जिसे गुणवत्ता और खराब हो जाती है.
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मथुरा के पेड़ों में बढ़ती मिलावट कई वजह से चिंताजनक है. पहला तो यह लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है. दूसरा राज्य सरकार इसे दुनिया भर में लोकप्रिय बनाने के लिए जीआई टैग दिलाने के लिए प्रयास कर रही है. ऐसे में जरा से मुनाफे के लिए मिलावटखोर प्रदेश और देश की साख को भी बट्टा लगा रहे हैं. जबकि इसका नुकसान स्थानीय कारोबारियों को भी होगा. कुछ समय पहले खाद्य विभाग की कार्रवाई में पता चला था कि पेड़े के नमूनों में आयोडीन घोल डालते ही पेड़ा पूरा काला पड़ गया. यानी इनमें स्टॉर्च की अधिक मात्रा थी.मिलावट का यह धंधा तब चल रहा है जब खाद्य विभाग लगातार मिलावटखोरों पर कार्रवाई करता रहता है. ऐसे में जरुरत इस बात की है कि ऐसे मिलावटखोरों पर सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए.
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