इलाहाबाद HC ने जताई चिंता, कहा- याचिका में तथ्य छिपाना अदालत के साथ कपट है, ऐसा व्यक्ति अर्थदंड पाने का हकदार
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इलाहाबाद HC ने जताई चिंता, कहा- याचिका में तथ्य छिपाना अदालत के साथ कपट है, ऐसा व्यक्ति अर्थदंड पाने का हकदार

चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस प्रकाश पाडिया की डिविजन ने हैदराबाद में सॉफ्टवेयर इंजीनियर पद पर कार्यरत शख्स की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है. 

फाइल फोटो.

मोहम्मद गुफरान/प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि याचिका में तथ्य छिपाना अदालत के साथ कपट है. स्वच्छ हृदय से अदालत न आने वाला राहत नहीं, अर्थदंड पाने का हकदार है. कोर्ट ने कहा कि आजादी के पहले से सत्य न्याय व्यवस्था का अभिन्न अंग है, लेकिन चिंता जताई कि आजादी के बाद मूल्यों में बदलाव देखा जा रहा है. लोग निजी लाभ के लिए मुकदमेबाजी में झूठ का सहारा लेने में संकोच नहीं करते. तथ्य छिपाकर, कोर्ट को गुमराह कर हित साधना चाहते हैं. चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस प्रकाश पाडिया की डिविजन ने हैदराबाद में सॉफ्टवेयर इंजीनियर पद पर कार्यरत शख्स की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है. 

सच छिपाना-झूठ का सहारा लेना दोनों एक समान
कोर्ट ने कहा, पिछले 40 सालों में मूल्यों में काफी गिरावट आई है. वादकारी कोर्ट को गुमराह कर आदेश लेने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है. सच का वह सम्मान नहीं रहा. ऐसा वादकारी जिसने अपने गंदे हाथों से न्याय व्यवस्था को दूषित करने की कोशिश की है. वह राहत पाने का कतई हकदार नहीं हो सकता. कोर्ट ने कहा सच छिपाना और झूठ का सहारा लेना दोनों एक समान है. कोर्ट ने 25 हजार रुपये का हर्जाना लगाते हुए जनहित याचिका खारिज कर दी है. साथ ही कहा है कि चार हफ्ते में हर्जाना राशि राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा किया जाए. 

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हाईकोर्ट रूल्स का पालन नहीं किया गया
जनहित याचिका में आजमगढ़ के बरहद थाना क्षेत्र के गांव में सस्ते गल्ले की दूकान के आवंटन में भ्रष्टाचार की जांच कराने और विपक्षी को आवंटित दूकान दूसरे को देने की मांग की गई थी. याची हैदराबाद से वीडियो कांफ्रेंसिंग से स्वयं बहस कर रहा था. सरकारी अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि इसी मांग को लेकर याची ने आपराधिक याचिका दायर की थी, जो खारिज कर दी गई थी. इस तथ्य को छिपाकर यह जनहित याचिका दायर की गई है. इसके साथ ही हाईकोर्ट रूल्स का पालन नहीं किया गया. याची ने अपने बारे में पूरी जानकारी नहीं दी. वहीं, जवाब में याची का कहना था कि यह याचिका सरकारी अधिकारियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ है. विपक्षी के खिलाफ नहीं है. इसलिए पिछली याचिका की जानकारी देना जरूरी नहीं है. 

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कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि स्वच्छ हृदय से कोर्ट न आने वाले को राहत पाने का अधिकार नहीं है. बल्कि वह पेनाल्टी का हकदार है. कोर्ट ने दोनों याचिकाओं को देखकर कहा कि प्रार्थना एक जैसी है. याची के खिलाफ विपक्षी ने एफआईआर दर्ज कराई थी. चार्जशीट दाखिल है, याची ने भी क्रॉस केस किया है. ये सारे तथ्य छिपाकर याचिका दायर की गई थी. 

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