Diwali 2021: झांसी की इस ग्वालन के बिना अधूरी है लक्ष्मी-गणेश की पूजा, जानें कैसे शुरू हुई ये परंपरा?
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Diwali 2021: झांसी की इस ग्वालन के बिना अधूरी है लक्ष्मी-गणेश की पूजा, जानें कैसे शुरू हुई ये परंपरा?

झांसी में दीपावली के दिन बुंदेलखंड में लक्ष्मी-गणेश के साथ ही ग्वालन की भी पूजा की जाती है. झांसी लक्ष्मी गणेश के साथ ग्वालन की मूर्ति भी खूब बिकती है.

Diwali 2021: झांसी की इस ग्वालन के बिना अधूरी है लक्ष्मी-गणेश की पूजा, जानें कैसे शुरू हुई ये परंपरा?

झांसी: यूपी के झांसी में दीपावली के दिन बुंदेलखंड में लक्ष्मी-गणेश के साथ ही ग्वालन की भी पूजा की जाती है. ग्वालन को ग्राम्य संस्कृति से जुडा होने के कारण लक्ष्मी का रूप माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि ये बुन्देलखंड की अनूठी संस्कृति है जो अपने लोगों के मिट्टी से जुडाव तो दर्शाती है और उनके जीवन में विकास करती है.

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लक्ष्मी गणेश की मूर्तियों के साथ ग्वालन की मूर्ति की भी खूब बिक्री

झांसी के बाजार में दुकानों पर लक्ष्मी गणेश की मूर्तियों के साथ ही ग्वालन की मूर्ति की भी खूब बिक्री हो रही है. ग्वालन के सिर पर और हाथों में दीपक होता है जिसे दीपावली के दिन विशेष रूप से सजाया जाता है जिससे जीवन में प्रकाश का संचार होता है. ग्वालन की मूर्ति खरीद रही डॉ प्रतिभा ने बताया कि जैसे हम लोग लक्ष्मी गणेश जी की पूजा करते हैं और शुभ माना जाता है वैसे ही ग्वालन की पूजा को शुभ माना जाता है, साथ ही धन धान की प्रतीक माना जाता है इसलिए ग्वालन को लेते हैं और पूजा करते हैं.

वहीं धर्माचार्य पं चन्द्र प्रकाश तिवारी ने बताया कि बुंदेलखंड में ग्वालन का विशेष प्रचार प्रसार है यहां पर माटी कि ग्वालन बनाकर के गरीब लोग खील-बताशे से पूजन करके अपने जीवन में विकास करने के लिए ग्वालन की पूजा करते हैं.

एक हजार साल पुरानी परंपरा
लोक मान्यताओं के अनुसार ग्वालन की पूजा की परंपरा 1000 से ज्यादा पुरानी है. मूलत बुंदेलखंड में इसके पूजन की शुरुआत हुई जो आसपास के राज्यों तक चली गई. ऐसा माना जाता है कि पहले संपन्न लोग लक्ष्म-गणेश की सुंदर मूर्तियां और सैकड़ों दीप जलाकर दिवाली मनाते थे. लेकिन गरीब लोगों को इसके योग्य नहीं माना जाता था. तब से ही ग्वालन की पूजा करना शुरू हो गया. ग्वालन की पूजा केवल मिट्टी की मूर्ति में ही की जाती है.

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