Holi 2023: इस मिठाई के बिना अधूरा है रंगों का त्योहार, जानें पकवानों की रानी `गुजिया` की सदियों पुरानी कहानी
Holi Traditional Food: मैदे और खोए से बनी मिठाई का लोग पूरे साल ही इंतजार करते हैं...इसको देखकर ही मुंह में पानी आ जाता है और इसका स्वाद लाजवाब लगता है... मीठे के शौक़ीन लोग तो मानो पूरे साल गुजिया खाने के लिए इस ख़ास त्योहार का इंतजार करते हैं और रंगों में सराबोर होने के साथ गुजिया का लुत्फ़ उठाते हैं... खोए और मैदे से बनी ये ख़ास मिठाई वास्तव में जब प्लेट में सर्व की जाती है तब मुंह में पानी आ जाता है और इसका स्वाद लाजवाब लगता है..आइए इसका इतिहास जानते हैं.
Holi 2023: हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होली का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन लोग रंग-बिरगे रंगों से होली खेलते हैं. इस बार होली का त्योहार 8 मार्च को होलिका दहन है और अगले दिन रंगों की होली खेली जाएगी. होली पर सब एक दूसरे के घर जाते हैं. इस मौके पर मुंह मीठा तो करना बनता ही है. पहले से ही घरों में मिठाईयां और पकवान बनना शुरू हो जाते हैं. घरों में हफ्तों पहले पापड़, चिप्स, नमकीन-मठरी, गुजिया बनना शुरू हो जाती हैं. यहां पर हम आपको गुजिया का इतिहास बताने जा रहे हैं.
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गुजिया बिना अधूरा रंगों का त्योहार
रंगों का ये त्योहरा बिना गुजिया के अधूरा है. अर्द्धचंद्राकार जैसी दिखने वाली गुझिया जिसे पकवानों की रानी भी कहा जाता है. भारत में गांवों से लेकर करीब-करीब सभी शहरों में गुझिया अपनी मिठास बिखेरती है.
मुगलकालीन समय की है गुझिया
अगर इसके इतिहास की बात करें तो इसकी शुरुआत मध्यकालीन युग से हुई ती. कहा जाता है मुगलकालीन समय से ही ये व्यंजन सामने आया. और फिर बाद में त्योहारों की स्पेशल मिठाई बन गई. ये भी कहा जाता है कि सबसे पहला जिक्र 13वीं शताब्दी में एक ऐसे रूप में सामने आता है जिसे गुड़ और आटे से तैयार किया गया.
गुजिया का इतिहास
गुझिया खाते समय आपमें से न जाने कितनों के मन में ये ख्याल कभी न कभी तो जरूर आया होगा कि ये मजेदार मिठाई आखिर पहली बार कहां बनी होगी? किसने इसके बारे में सोचा तो होगा. मिठाई बनी तो इसका नाम गुझिया ही क्यों रखा गया. फिर ये होली पर ही क्यों बनाई जाती है.
गुड़ और शहद से बनाई जाती थी गुझिया
ऐसा कहा जाता है कि सबसे पहले गुझिया को गुड़ और शहद को आटे के पतले खोल में भरकर धूप में सुखाकर बनाई गई थी और यह उस समय की बेहतरीन मिठाई बन गई थी. अगर बात करें तो आज के समय में गुजिया का रूप थोड़ा सा बदल गया है. गुजिया की हिस्ट्री में ये बात सामने आती है कि इसे सबसे पहली बार यूपी के बुंदेलखंड इलाके में बनाया गया और वहीं से ये बिहार,राजस्थान, मध्यप्रदेशऔर अन्य प्रदेशों में काफी मशहूर हो गई. ऐसा भी कहा जाता है जब भारत में समोसे की शुरुआत हुई तब ही गुजिया का भी अविष्कार हुआ. इस प्रकार इसका इतिहास काफी पुराना और अपनी खूबियों और बढ़िया स्वाद के कारण ये हमारे त्योहारों का हिस्सा बन गई.
होली में क्यों बनाई जाती है गुजिया
होली में गुझिया बनाने का चलन सदियों पुराना है. माना जाता है कि होली में सबसे पहले ब्रज में कृष्ण भगवान को इस मिठाई का भोग लगाया जाता है. होली के त्योहार में इसे विशेष रूप से तैयार किया जाता है क्योंकि इसका चलन ब्रज से ही आया और ब्रज में ही होली के दिन पहली बार गुजिया का भोग लगाया गया. तभी से ये होली की मुख्य मिठाई के रूप में सामने आई. हालांकि अब ये मिठाई होली के अलावा भी कई त्योहारों जैसे दिवाली और बिहार में छठ पूजा में भी बनाई जाती है।
एक मिठाई के अलग-अलग नाम
इस मिठाई के अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नाम भी हैं जैसे बिहार में गुझिया को पिड़ुकिया, महाराष्ट्र में करंजी, गुजरात में घुघरा, आंध्रप्रदेश में कज्जिकयालु, तमिल में कचरिका और कन्नड़ और तेलुगु में कज्जीकई और छत्तीसगढ़ में कुसली कहा जाता है.
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